कुछ तो होता है लिबास में
जिसे बदलते ही
आभास बदल जाते हैं
आश्चर्य है एक रईस
भिक्षुक बन नापता है
सारे कचरा घर
और ढूंढता है भोजन
और कुछ दिन बाद लौट जाता है
अपने आलिशान लिबास की ओर
सच्ची - ये सब लिबास
जैसे कोई रोमांच की पूरी दुनिया हों
जिसको छूने भर से ही
राय बदलने लगती है
अपनी भी और ज़माने की भी
सोचती हूँ किसने बनाया होगा
वह पहला लिबास
जिसमे इंसान छुप गया होगा
और बाहर बचे होंगे
इंसानी ऊँच नीच के कारोबार
और आज तक अब भी
इंसान के पेट की रोटी का ज्यादातर हिस्सा
चुपचाप खा रहें है लिबास
और हम खिला रहे है
हर रोज एक और ऊँचा लिबास
ले आने में जुटे हैं
लिबास ने भी क्या किस्मत पायी है
राजा तो क्या रानी भी भरमाई है
और भरमाये हैं वे सब जिन्हें
लिबास से ज्यादा रोटी ज़रूरी है
और हाँ आत्माएं भी तो बदल रही है
देहो के लिबास और उसी से सीखा होगा
बदलना और बनाना लिबास
सुनीता धारीवाल
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