शनिवार, 25 जून 2016

लिबास





कुछ  तो होता है लिबास में
जिसे   बदलते  ही
आभास बदल जाते हैं
आश्चर्य है एक रईस
भिक्षुक बन नापता  है
सारे  कचरा  घर
और  ढूंढता  है  भोजन
और  कुछ  दिन बाद लौट  जाता है
अपने आलिशान लिबास की ओर
सच्ची - ये  सब  लिबास
जैसे कोई रोमांच की पूरी दुनिया  हों
जिसको छूने  भर  से  ही
राय  बदलने  लगती  है
अपनी  भी  और ज़माने  की भी
सोचती  हूँ  किसने बनाया  होगा
वह पहला  लिबास
जिसमे इंसान छुप  गया  होगा
और  बाहर  बचे होंगे
इंसानी  ऊँच नीच  के कारोबार
और  आज  तक अब  भी
 इंसान के पेट की रोटी का ज्यादातर हिस्सा
 चुपचाप खा रहें  है  लिबास
और हम  खिला  रहे  है
हर  रोज  एक और  ऊँचा लिबास
ले आने  में  जुटे  हैं
लिबास ने भी क्या  किस्मत पायी है
राजा  तो  क्या रानी भी भरमाई है
और भरमाये हैं वे सब जिन्हें
लिबास से ज्यादा रोटी ज़रूरी है
और  हाँ  आत्माएं  भी तो बदल रही है
देहो के लिबास और उसी से सीखा होगा
बदलना और बनाना लिबास

सुनीता धारीवाल



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