बुधवार, 1 जून 2016

मैं पहचानती हूँ उसे

गिरे तो वही थे 
हमने तो बस देख लिया था
हँसे तो कदापि नहीं थे 
सकते में थे 
मौन हो गए थे 
वो आज भी
उस मौन से डर कर
आँखे चुरा कर
बच निकलते हैं
उन जनाब का
लोग सवाल लिए हैं
गुनाह मैंने ही
कुछ किया होगा
वह कैसा बिफर जाता है
कहता हैं मुझे जानता नहीं
कुरेदने पर
घुटनों के बल आ गिरता है
वह नहीं मैं पहचानती हूँ उसे

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