रविवार, 3 सितंबर 2017

परिणीति


मैं रोती कहाँ हूँ
ये अलग बात है 
आजकल आंखों में
हर ख्वाब तुम्हारा होता है
और सच का धरातल
धूल के कण की तरह
आंखों में रड़कता है
और रहती है
नींदे उड़ी उड़ी सी।
मेरी बेबसी का आंनद
लेती है मेरी ही नज़र
इस फलसफे में
कुछ नही रखा बस
इतना याद है
कि तुम जीने की वजह हो
और मैं त बॉवली
परिणीति की बाट में हूँ

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