मैं रोती कहाँ हूँ
ये अलग बात है
आजकल आंखों में
हर ख्वाब तुम्हारा होता है
और सच का धरातल
धूल के कण की तरह
आंखों में रड़कता है
और रहती है
नींदे उड़ी उड़ी सी।
मेरी बेबसी का आंनद
लेती है मेरी ही नज़र
इस फलसफे में
कुछ नही रखा बस
इतना याद है
कि तुम जीने की वजह हो
और मैं त बॉवली
परिणीति की बाट में हूँ
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
रविवार, 3 सितंबर 2017
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