शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

तुम बिन

बिन तेरे न कटती रातें
बिन तेरे न कटते दिन

न मिलते गर  तुम मुझको
मैं अंतिम सांसें लेती गिन

हर पल तेरी बाट में बीते
बिरहा में तड़पे मेरा मन

कौन घड़ी जब संग नही तुम
मेरे खाली न कोई  पल छिन

तुम अनहोना सा  सपना मेरा
तुमको लम्हों में  जी लूँ  गिन गिन  

तुम रिश्तो का एक कल्प वृक्ष
मैं सत्य बेल लिपटी तुम पर

मैं मृग तृष्णा में ढूंढ रही हूं
मेरे जिंदा होने के चिन्ह

तुम हर रिश्ते के पार मिले हो
नामुमकिन प्रेम  हुआ मुमकिन

मुझको जीना है बस कुछ दिन
सच न जी पाऊंगी अब  तुम बिन

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें