देखो न
तुमसे रौशन है
मेरे मन का हर कोना
कितने अंधेरों को
तुम्हारी लौ ने हर लिया है
अब अंधेरे मित्र नही मेरे
न ही उजाले डराते है
उजले से ही तुम हो
उजाला मुझे दिखाते हो
कुछ हौंसला सा मुझ में
फुलझड़ियों सा मुस्काता है
दीपमाला की चांदनी में
मुझे तेरा पता मिल जाता है
तुम ने मेरे तन मन भीतर
दीवाली सी रच डाली है
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
बुधवार, 18 अक्तूबर 2017
रौशन तुम से
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें