बुधवार, 18 अक्तूबर 2017

रौशन तुम से

देखो न
तुमसे रौशन है
मेरे मन का हर कोना
कितने अंधेरों को
तुम्हारी लौ ने हर लिया है
अब अंधेरे मित्र नही मेरे 
न ही उजाले डराते है
उजले से ही  तुम हो
उजाला मुझे दिखाते हो
कुछ हौंसला सा मुझ में
फुलझड़ियों सा मुस्काता है
दीपमाला की चांदनी में 
मुझे तेरा पता मिल जाता है
तुम  ने मेरे तन मन भीतर
दीवाली सी रच डाली है

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