ए दोस्त
तू मुझे जिंदगी सा लगता है
तेरे मन का है नूर
जो मेरे चेहरे पर झलकता है
तेरी बातों में
तेरे जीवन का तप झलकता है
तेरी नजर ए इनायत से
रोम रोम मेरा महकता है
तेरी आँखों मे सच्चाई
तेरा ईमान चमकता है
इश्किया रूह के कारण
तेरा चेहरा दमकता है
मुझ से कोई पूछ कर देखे
तू मुझको कितना जंचता है
मैं तेरी हो नही सकती
तू मेरा हो तो सकता है
तू है तो मन मे मेरे
असंख्य दीपों का उजाला है
शक्ति मेरे भीतर है
प्रेम मेरी ज्वाला है
कोई पूछे कैसे मैने
अपना यह दिल सम्भाला है
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
बुधवार, 1 नवंबर 2017
तू जिंदगी सा लगता है
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