रविवार, 28 मई 2017

दूर गगन के

तुम बादल किसी दूर गगन के
तुम से न बरसा जाएगा

मै तपती धरती मारू थल
तुम से न सींचा जाएगा

मैंने देखा तुम्हे  पुकार लिया
तुम से तो रुका न जाएगा

तुम झुके जरा जरा थोड़े थोड़े
पर तुम से बरसा न जाएगा

तुम रख लो अपना जल भीतर
आंखों से बह मुझ तक आएगा

चलो कोशिश करो न बरसोगे
एक दिन मुझको भी तरसोगे

मैं नहीं मिलूंगी उस सेहरा में
मैं मृग मारीचिका सी छल जाउंगी

तुम जल भर कर जब भी गुजरोगे
मैं पानी पानी हो जाउंगी

सुनीता धारीवाल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें