गुरुवार, 18 मई 2017

तुम्हे जिंदगी बना लूँ

तुम्हे नींद से जगा लूँ
तुमको गले लगा लूँ
देखो मुझे तुम जी भर
नजरें मैं अपनी झुका लूँ
मेरी सांस बन बहो तुम
तुम्हे धड़कन मेरी बना लूँ
मिल जाओ मुझ में इतना
जिंदगी मैं अपनी बना लूँ
मैं रहूं न बाकी जरा भी
खुद को मैं तुम पर मिटा लूँ
तुम गहन  प्रेम हो मेरे प्रिय
तुम्हे  प्रेम से ही  मैं पा लूँ
तुम ताप ही रहो तपे हो
खुद को मैं जरा तपा लूँ
करूँ नव जीवन निर्माण प्रिय
मेरी कोख में अंकुर सजा लूं
तुम सींचो मुझे भाव जल से
मैं बगिया तुम्हारी खिला दूँ
मैं जियूँ तुम्हे जी भर के
तुम्हे जिंदगी बना लूँ

सुनीता बॉवली

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें