वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
शनिवार, 27 मई 2017
लहर
लहरों का मुक्कदर देखो
समंदर में ही रह
किनारों से सर पटकती है
मैं जैसे लहर तुम में रहूं भी
और अपना सर पटकूं भी
किनारों से न अलग हो पाऊं ।
लहर को लहर रखता है
हवा का कहर रखता है
तू कितना गहरा समुन्द्र है
ज्वार में फर्क रखता है
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