मंगलवार, 9 मई 2017

कारावास में मुझे

मैं चाहती भी नहीं 
ये तिल्लिसम कोई तोड़ दे 
कि मैं तुम्हारी हूँ 
इसका कोई भ्र्म तोड़ दे 
नीरस ही है और था
यह जीवन तेरे बिना 
कोई पा जाऊं उपाय मैं 
जो तुम्हे मुझ से जोड़ दे 
अपना ले बस वो मुझे 
तमाम दुनिया मुझे छोड़ दे 
इश्क़ ज्यादा है किसका 
आगे निकलने की होड़ दे 
सिर्फ एक बार ही हो जाये 
वो बस मेरा यकीनन 
फिर चाहे दिल मेरा  तोड़ दे 
वो एक बार कुछ तो कहे मुझ से 
हे राम तू उसकी चुप्पी तोड़ दे 
जुर्म भी है किया मैंने ही गुनाह मेरा है 
मेरे कारावास मे उसे कैदी छोड़ दे

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