शुक्रवार, 26 मई 2017

मन्नतों का कोई धागा
न बना है मेरे लिए
न कोई पेड़ बाकी है
न कोई टहनी ऐसी है
जहाँ बेनाम रिश्तो की
दुआएं मांगी जाती हों ।

न कोई पीर की चादर
बनी है वास्ते मेरे
न कोई मजार बाकी है
जहां सदका उतरता हो
बेनामी पाक रिश्तो का

न कोई मंदिर है मस्जिद है
न कोई  अजान न घंटी है
जो शोरोगुल में कह पाए
जो  कुछ बेनाम रिश्ते है
वो दुनिया के फरिश्ते हैं ।

न कोई  पंच न पंचायत ।
न  कोई थाना न कचहरी है
जहां दरख्वास्त भेजूं मैं
सजा खुद मांग लूँ अपनी
कि हर गलती भी मेरी है

न कोई दवा न दवाखाना
जहां  बेनामी दर्द और रिश्ते
रिसते हो और सिसकते हो
उन्हें कुछ बाम मिलता हो

न कोई है  मधु न मधुशाला
जहां कोई भूल पाता हो
नशा सर चढ़ कर बोला था
वो सर से उतरा जाता हो

न कोई मदरसा  न पाठशाला
जो रिश्तो के कायदे बताती हों
बे रिश्तों में रहूं कैसे जियूँ कैसे
न किसी ने हुनर सिखाया है

बता कोई तो जगह होगी
जहां पर वो फरियादी हो
जिनका रूहों से मिलना हो
जिनकी रूहानी शादी हो

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