कैसे मन की परिभाषा में
तन की अभिलाषा दम तोड़ी
मैं इतनी भी खुदगर्ज नही
जा तेरी ही आशा छोड़ी
तन माटी और मन सोना सही
माटी का मोल बस दो कौड़ी
तन रूहों का ही घर होता है
रब्ब ने ये जगह नही छोड़ी
न गलत कोई न सही कोई
होता है वही जो होगा सही
क्यों तुमको मन समझाना है
क्यूँ सिद्धांतो को सरकाना है
मैं कुछ दिन की ही हूँ तड़प बड़ी
मैंने खुद ब खुद आगे बढ़ जाना है
क्यूँ नाहक चिंता तुम करते हो
चिंतन तो मेरा तराना है
मैं बाट मुसाफिर थकी हुई
तुमको देखा तो प्यास लगी
सागर में रहती हूँ उथल पुथल
तुम मीठा झरना मैं बहक गई
तुम रहो मगन अपने तन मन में
क्यूँ मैंने तुमको भरमाना है
मैं कारावास आदि नहीं
मैंने तोड़ जंजीरें जाना है
चलते जाना ही जीवन है
रुकना तो बस मर जाना है
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