शुक्रवार, 4 अगस्त 2017

दूरी

दूरी है शहर की
दूरी है उम्र की
दूरी है परिवेश की
दूरी है सोच की
दूरी है लग्न की
दूरी भी है अग्न की
दूरी है कद की
दूरी है चाहने की हद की
दूरी है भाषा की
दूरी है आशा की
दूरी है चाह की
दूरी अलग अलग राह की
फिर भी दो कदम ही सही
चलो चल के देखें तो सही
ज़िन्दगी रोमांच सी लगेगी
बाकि मुक्क़दर ही सही
दूरी इतनी भी नहीं कि नपेगी नहीं

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें