मंगलवार, 17 नवंबर 2015

दुस्साहस


मेरी चुप का कितना
महिमा मन्डन है
इस गैर जरूरी बचकाने से
महिमा मंडन का
मेरी ओर से खन्डन है
पर मै तो बोलती हूं
सब नारियों की जुबान बनकर
अब तो लिखती भी रहती हूं
सभी अबलाओं के बयान बन कर
मुझे तो स्वीकार है
मेरे निसंकोच बोलने पर मिले
सभी विशेषण
बेशरम -बेहया -निल्लर्ज
बुरी औरत-गंदी औरत
चरित्रहीन-,चंचला-उन्छृखल
छुट्टा औरत – खुली औरत
गिरी हुई – कलांकिनि
भकैल रान्ड- कमजात लुगाई
और भी न जाने कैसे कैसे
विशेषण जो भी तुम गढ़ सकते हो
मेरे पंचायतो में बेबाक बोलने पर
मझे अपने बलात्कार की रपट लिखाने पर
मेरे अदालतों मे गुहार -पुकार लगाने पर
देह नोचने वालो पर बीच सड़क चिल्लाने पर
बहुत हो चुका-मुझे अब कहना है
पीड़ा को नही सहना है
तुम ही बताओ
तुम्हारा बोलना साहस
मेरा दुस्साहस कैसे…

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें