गुरुवार, 5 नवंबर 2015

टिकट - कहानी

टिकट
नंदिनी कानपुर शहर की शालीन प्रतिभाशाली समाज सेवी महिला थी। जिसे पूरे प्रदेशभर में कानपुर की नंदिनी बहन के नाम से लोग पहचानते थे। वह अक्सर सामाजिक आयोजनों में अपने व्याख्यान देने हेतू जाती रहती थी। ऐसे ही एक दिन पास के छोटे से कस्बे के महिला महाविघालय में नंदिनी “महिलाओं के समक्ष राजनैतिक चुनौतियां ” विषय पर अपना व्याख्यान पूरा कर मंच से उतरी तो उसे एक युवती ने पीछे से पुकारा- मैडम मैं राशि वर्मा आपकी फैन हो गई हूं। आप मेरी बड़ी दीदी बन जाईए । मुझे आपसे बहुत कुछ सीखना है। नंदिनी ने ध्यान से देखा तो यह वही छात्रा थी जो सेमिनार में मंच की सारी व्यवस्थाएं संभाले हुए थी और उसने मंच पर लोक नृत्य की आकर्षक प्रस्तुति भी दी थी। वह कॉलेज के प्रांगण से गेट तक नंदिनी के साथ-साथ चलती रही थी और इतने में ही उसने नंदिनी का पता पूछ लिया था। बहुत सी छात्राएं नंदिनी की फैन थी परन्तु इस वर्मा में कुछ अलग ही बात थी।
नाटे से कटे राशि आकर्षक दिखती थी। राशि अब अक्सर नंदिनी से मिलने आती थी। राशि की अपरिपक्व सी गुदगुदाने वाली बातें नंदिनी को भी अच्छी लगने लगी थी। उसने नंदिनी के साथ अनजाने प्रेम का रिश्ता जोड़ लिया था। नंदिनी कुशल वक्ता होने के साथ-साथ उच्च आचरण वाली महिला थी। राशि कई बार नंदिनी के घर रुक जाती व नंदिनी के साथ कई समारोहों में भाग लेती। नंदिनी छोटी बहन की तरह उसकी सब छोटी-छोटी कपड़ों की, गहनों की इच्छा पूरी कर देती थी। कभी-कभार उसके पर्यटन की भी सुविधा उपलब्ध करवा देती। फिर राशि उच्च शिक्षा के लिए छात्रावास में दो वर्ष रही और नंदिनी को पत्र लिखकर संपर्क में रही। राशि की शादी एक मैकेनिकल इंजीनियर कार गैराज के मालिक सेवा सिंह से हो गई। नंदिनी उसकी शादी में आर्शिवाद देने पहुंची और ढेरों उपहार भी ले गई। शादी के बाद राशि का दस साल तक नंदिनी से कोई संपर्क नहीं रहा। नंदिनी ने कभी उसकी पड़ताल भी नहीं की यह अनुमान लगाकर वह अपने घर में बच्चों के साथ सुखी होगी । नंदिनी के पति का तबादला लखनऊ में हो गया और वह लखनऊ में अपनी गतिविधियों में व्यस्त हो गई। अब तक नंदिनी की पहचान दूर-दूर तक हो गई थी और राज्य सरकार में कई विभागों के सलाहाकार के रूप में अपनी सेवाएं दे रही थी।
एक कार्यक्रम में नंदिनी की भेंट अचानक राशि से हुई। राशि अब तक भरी पूरी महिला थी। दो बेटों की मां थी और उसी शहर में रहती थी। राशि फिर से गाहे-बगाहे नंदिनी के घर दफ्तर अधिकार से चली आती थी। आज की राशि एक दम बेफिक्र हो कर समस्याओं से अट्टाहास करती बड़ी-बड़ी हिरनी जैसी चंचल आंखों वाली मदमस्त खूबसूरत आकर्षक महिला थी। उसने अत्यंत महत्वक्षाएं पाल रखी थी। अपने सपनों का पीछा करते समय वह मान मर्यादा, संस्कार, धर्म सब भूल जाती थी। वह सामाजिक सीमाओं का उल्लंघन करती और उपहास करती थी। नंदिनी को अब वह पहले जैसी नहीं लगती थी पर उसका लगाव राशि से कम नहीं हुआ था। नंदिनी के सफल लोकप्रिय सामाजिक जीवन से राशि के मन में अनजानी प्रतिस्पर्धा को जन्म दे दिया था। वह नंदिनी से आगे निकल जाना चाहती थी और नंदिनी को ईष्या का अहसास तक नहीं हुआ। वह नंदिनी के पीठ पीछे नंदिनी के बारे में अर्नगल बातें फैलाने लग गई थी और नंदिनी के सामने आदर्श शिष्या के रूप में सब सलाह लेती रहती थी।
एक दिन राशि ने नंदिनी के समक्ष प्रस्ताव रखा कि दीदी मैं राजनीति में अपना भविष्य बनाना चाहती हूं यदि आप मदद करें तो मैं जल्द ही आपके सपने भी पूरे कर पाऊंगी। बस मुझे एक बार राष्ट्रीय राजनैतिक दल में पदाधिकारी नियुक्त करवा दो। नंदिनी चूंकि अब स्थापित महिला थी, अनेक अवसरों पर नंदिनी की भेंट राजनेताओं से भी हो जाया करती थी। नंदिनी के प्रदेश की लोप्रिय लोकराज पार्टी के युवा प्रदेश अध्यक्ष राजन मिश्रा से फोन कर राशि को दल में शामिल करने की सिफारिश की और राशि का परिचय करवाया। राशि ने इस अवसर को हाथ से जाने न दिया। राशि के सौन्दर्य न निमंत्रण के आगे राजन मिश्रा पस्त हो गया। उसके माध्यम से राशि ने अपना दूसरा लक्ष्य पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष महेश्वर को बना लिया। महेश्वर साफ अच्छा छवि का अधेड़ आयु का प्रतिष्ठित अधिवक्ता व लोकराज पार्टी का अध्यक्ष था। महेश्वर सियासत में रह कर भी महिलाओं एवं तमाम व्यसनों से दूर था। पूरे प्रदेश में पार्टी ने उसकी बेदाग छवि को ही भुनाया था और महेश्वर के चरित्र के पक्ष में मंचों पर ताल ठोक कर विरोधी दलों को चुनौती दी जाती थी।
महेश्वर विपक्षी दल का नेतृत्वकर्ता था और भावी मुख्यमन्त्री के रूप में प्रचारित था। महेश्वर ने प्रदेशभर में पदयात्रा का कार्यक्रम बनाया और तय दिवस से सरकार के विरूद्ध न्याय यात्रा का शुभारंभ कर दिया। राशि ने यहीं मौका चुन लिया। ऐथलीट रही राशि को पदयात्रा में चलने में कोई परेशानी नहीं हुई। वह पूरी यात्रा के दौरान महेश्वर की आंखों से नटखट संदेश देने में भी नहीं चूकी। पदयात्रा बहुत लम्बी थी और यात्री भी बहुत ज्यादा थे। जैसे-जैसे यात्रा आगे बढ़ती गई काफिला छोटा चला गया। हजारों की संख्या पांच जिले पार करते-करते दर्जनों की रह गई थी। अब राशि महेश्वर के कदम से कदम मिलाने लगी थी। महेश्वर सुबह चार बजे उठते व्यायाम करते व सुबह 7 बजे फिर यात्रा पर चल देते । एक दिन राशि ने सुबह के वक्त व्यायाम करते महेश्वर से कहा कि अध्यक्ष जी आप सिर्फ देखते ही हो या बात भी करते हो। महेश्वर इस अप्रत्याशित सवाल के लिए तैयार नहीं था, सकपकाते हकलाते हुए बोला जी कहिए। राशि ने अदा से कहा यहां नहीं मुझे तो अकेले में बात करनी है। महेश्वर ने उसे दिल्ली कार्यालय में मिलने को कहा। यात्रा पूरी होते ही राशि महेश्वर को मिलने दिल्ली गई। गहमा- गहमी के बीच से निकल महेश्वर ने राशि को ड्राईंग रूम में बिठा लिया। राशि ने फिर महेश्वर से कहा से यहां नहीं एकांत में ही बात करनी है और कहते ही महेश्वर को आलिंगन में ले लिया और तुरन्त छोड़ कर जाने के लिए खड़ी हो गई। राशि जान गई थी कि अब उसे महेश्वर का पीछा नहीं करना अब महेश्वर ही उसे ढूंढ लेगा।
राशि महेश्वर से तीन साल छोटी युवा महिला थी और रिझाना जानती थी। महेश्वर का रात की नींदे उड़ चकी थी। कुछ दिन बाद महेश्वर ने राशि को फोन कर दिल्ली के पांच सितारा होटल में पहिंचने के लिए कहा। राशि को इसी दिन का इंतजार था। तय वक्त राशि होटल में महेश्वर का इंतजार करने लगी। महेश्वर आज कुरता पायजामा छोड़ टी- शर्ट, जींस व टोपी पहनकर स्वंय कार चलाकर पहुंचा था। राशि ने युवाध्यक्ष राजन मिश्रा को अपना हमराज बना लिया और उसके मार्फत उसी पांच सितारा होटल में कमरा बुक करवा लिया था। राशि महेश्वर को अपने कमरे में ले गई और कब सुबह से रात हुई महेश्वर को पता न चला। राशि ने मपेश्वर को पुरुष होने का पूरा अहसास करवाया उसकी हाशिए पर रख दी गई जिस्मानी जरूरतों को जगा दिया था। मदमस्त राशि ने मपेश्वर को त्यागी कठोर चरित्रवान संयमी नेता की श्रेणी से बाहर दिया था। महेश्वर राशि को मिलने के बहाने तलाश करता। वह जहां पर जिस शहर में जाता, जिस होटल में रहता राशि अपना कमरा बगल के होटल में बुक करवा लेती। राजन मिश्रा राशि के आने- जाने का होटल का खर्चा उठाता। वह अपना राजनैतिक भविष्य व टिकट सुनिश्चत करने के लिए रशि पर निवेश कर रहा था और राशि ने समय आने पर उसकी टिकट का भरोसा दे डाला था।
महेश्वर रात के अंधेरे कभी सुबह अंधेरे सुरक्षा कर्मियों की नजर बचा कपड़े बदल राशि के कमरे में पहुंच जाता था। राशि ने महेश्वर अपनी जांघो का गुलाम बना लिया था। महेश्वर ने राशि पर धन की बरसात सी कर दी थी। राशि पंख लगाकर उड़ रही थी। अब वह प्रदेश की महासचिव बन गई थी। बड़ी- बड़ी रैलियों में अग्रिम पंक्ति में उसका स्थान निर्धारण हो गया था। जब भी मंच पर महेश्वर की सदचरित्रता के दावे किए जाते राशि कनखियों से महेश्वर की ओर देख मुस्करा देती थी और महेश्वर नजर चुरा लेता था। वक्ता मंच से जोर जोर से कहती भाईयो आपका भावी मुख्यंत्री चरित्र का ऊंचा, बेदाग छवि वाला लंगोट का पक्का सदाचारी जन सेवक है और प्रदेश का सौभाग्य है कि आज की गिरावट भरी राजनीति में महेश्वर जैसा खरा व्यक्ति आपके बीच उपलब्ध है और पंडाल तालियों से और महेश्वर भाई की जय हो के नारो से गूंज जाते। हर इस प्रकार के सम्बोधनों के बाद महेश्वर राशि से दूरी बना लेता था। राशि को पास आते ही उसका व्रत फिर टूट जाता था। खंडित ध्यान देख कर महेश्वर के भाई सुरेश को अंदाजा हो गया और महेश्वर व राशि बीच तस्वीर भी साफ हो गई। महेश्वर की बदनामी न हो इसलिए सुरेश ने राशि के साथ अपने संबंधों को प्रचारित करवा दिया था ताकि राशि अधिक नजदीक दिखाई देती भी रहे तो भी शक सुरेश पर ही बना रहे। सुरेश ने राशि व महेश्वर के मिलने के कईं अवसर जुटाए। राशि को अब राजन मिश्रा की जरूरत नहीं रही थी। उलट राशि ने राजन के प्रति महेश्वर के कान भर दिए और उसे युवा प्रदेश अध्यक्ष के पद से भी हटवा दिया। इन सब आंख मिचौली के बीच चुनाव का समय कब आया पता ही नहीं लगा। सभी ओर टिकट पाने की आपाघापी शुरू हो गई। पार्टी प्रदेशाध्यक्ष के नाते महेश्वर की टिकट अनुमोदन करने मुख्य भूमिका थी। टिकट प्रार्थी अलग- अलग ढंग से महेश्वर पर दबाव हनाने की कोशिश करते महेश्वर सब दबावों को झेलता हुआ अपना काम लगन से कर रहा था। अब राशि का वक्त था अपना मेहनताना मांगने का। राशि ने महेश्वर से चुनाव लड़ने के लिए टिकट मांगा। महेश्वर की नजर में राशि कभी परिपक्व नेता नही थी और उसे चुनावी प्रक्रिया का भी अनुभव नहीं था। महेश्वर ने राशि को टिकट के मना कर दिया। राशि इस जवाब के लिए तैयार नहीं थी। आशा के विपरीत जवाब मिलने पर राशि ने टिकट का रास्ता निकाल लिया था। अगले दिन सुबह राशि महेश्वरी के दफ्तर पहुंची जंहा चाहने वालों व उनके समर्थकों की भीड़ लगी थी। महेश्वर की पत्नी सुनन्दा भी कार्यालय के इन्तजाम देख रही थी और आस पास ही व्यस्त थी। राशि बिना औपचारिकता के अक्सर महेश्वर तक पहुंच जाती थी उस दिन राशि महेश्वर के कार्यालय में सीधा जा पहुंची जहां महेश्वर नाशता कर रहे थे। नाश्ता करते ही राशि ने महेश्वर को आलिंगन बद्ध कर लिया और चुम्बन में रत् कर लिया थोड़ा सा विरोध करते महेश्वर बेबस उसकी खुशबू में लीन हो गया औऱ उसी पल सुनन्दा का आगमन हो गया। सुनन्दा भौचक और महेश्वर खिसिया कर बाहर निकल गए। राशि भी सुनन्दा के आते ही बाहर निकल कर भीड़ में शामिल हो गई और महेश्वर जिन्दाबाद के नारे जोर से लगाने लगी। बाहर निकले महेश्वर को देखकर कार्याकर्ताओं ने उसे कघें पर उठा लिया जिन्दाबाद के नारों से सारा आलम गुंजाने लगा। महेश्वर की पत्नी को बहुत आघात लगा। उसने नशीली दवाईयां निगल ली। विरोधी नेताओं ने टिकटो की मारामारी में महेश्वर पर पूरा दबाव बना कर रखा था उधर, पत्नी ने आत्महत्या का प्रयास किया जिसे सुरेश ने संभाला। महेश्वर ने राशि से उपयुक्त दूरी बना ली अब राशि अन्य प्रत्याशियों की तरह सार्वजनिक रूप से टिकट मागने लगी। वह भी लाईन में लगने लगी। टिकट की अन्तिम सूची बनने तक राशि का कहीं नाम नहीं था। महेश्वर जब अन्तिन सूची पर राष्ट्रीय अध्यक्ष की मोहर लगवाने गए वहा पर राशि ने उन्हें घेर लिया और कहा यदि उसे टिकट नहीं मिला तो वह महेश्वर औऱ उसके बीच सम्बन्ध के सभी किस्से सबूत समेत मीडिया के सामने रख देगी और महेश्वर मुख्यमत्रीं तो क्या विधायक बनने लायक भी नहीं रहेगा। राशि ने दबंगता से एलान कर दिया यदि कल सुबह टिकट सूची में उसका नाम यदि अखबार में नहीं छपा तो वह अखबार बंटने का आधे घन्टे के अन्दर उसकी पत्नी के आत्महत्या के प्रयास और उसके वीडियो मीडिया तक पहुंचा देगी। महेश्वर का दम घुटने लगा था औऱ उसकी चाल में तो जैसे भारी-भारी पत्थर पैरों में बधें थे। वह चुपचाप मीटिंग रूम में चला गया। अगली सुबह राशि का नाम पार्टी के चुनावी प्रत्याशियों की सूची में प्रमुखता से छपा था।
महेश्वर ने राशि की कोई आर्थिक सहायता की न समर्थन किया न ही उसके हलके की किसी भी जमसभा में शिरकत करने गया। राशि टिकट पाने की जंग तो जीत गई थी परन्तु चुनाव लड़ने की जंग तो अभी शुरू हुई थी। स्थानीय नेताओं व कार्यकर्ताओं ने राशि के टिकट को लेकर बगावत कर दी थी। राशि का अपना कोई संगठन उस हलके में नहीं था, न ही उसके पास पर्याप्त धन था चुनाव के लिए। राशि चुनाव जीतने व वोट पाने के लिए बड़े-बड़े जमींदारों, आढ़तियों, शैलर मालिकों, सरपंचों व व्यापारियों के साथ हम बिस्तर होने लगी। यहा तक की लोगों के छोटे-छोटे पुलिस के काम के लिए भी उसने स्थानीय एस एच ओ के साथ भी रात बिता ली थी। राशि की छवि तीव्र गति से गिर गई और जीत नहीं पाई। पार्टी के नाम वोट जरूर मिले पर जीत का अन्तर बहुत बड़ा रहा । चुनावी चन्दा उगाही में राशि ने अच्छी खासी रकम जोड़ ली थी जिसे चुनाव में न खर्च कर बाद में घर बनवा लिया था। महेश्वर के आस पास राशि की अब कोई जगह नहीं थी। राजन मिश्रा टिकट न मिल पाने पर अवसाद में घिर कर मौत को गले लगा चुका खा और महेश्वर का भाई सुरेश हवाई दुर्घटना में मर चुका था। राशि के पास ऐसा कोई नहीं था जो महेश्वर से फिर से मिलकर दूरियां मिटा दे। महेश्वर ने राशि को पूर्णत्या दरकिनार करना शुरू कर दिया था। जिसे राशि सहन नहीं कर पा रही थी। राशि ने पार्टी के प्रदेश प्रभारी ओंकार नाथ चतुर्वेदी से अपनी नजदीकियां बढ़ा ली। ओंकार नाथ पार्टी के व्योवृद्ध नेता थे।
हिन्दी साहित्य के पक्षधार और हिन्दी भाषायी संगठनों के चेयरमैन। कभी चुनाव नहीं लड़े थे जीवन में पर राज्यसभा के रास्ते पदों पर विराजमान थे। ओंकार नाथ पत्नी व बच्चो से अलग दिल्ली के एक फ्लैट में रहते थे। राशि उस फ्लैट में ओंकार के संग रहने लगी। व्योवृद्ध नेता राशि के सान्ध्यि में जवानी की और लौटने लगे व सेहत व सफूर्ति में आश्चर्यजनक परिवर्तन आ गए। राशि ओंकार नाथ के माध्यम से लोगों के काम करवाती व पैसे ऐंठती। एक साल के अरसे में राशि ने बहुत धन इकट्ठा कर लिया था। ओंकार नाथ इतने कामान्ध हुए कि भले बुरे की समझ भी जाती रही। पार्टी ने ओंकार नाथ को प्रभारी से हटा महासचिव बना कर महत्वहीन सी जिम्मेदारी दे दी। ओंकार नाथ और राशि की कारगुजारियां एक दो अखबारों में छपनी शुरू हुई तो ओंकार नाथ का माथा ठनका उसने राशि को इस वायदे के साथ अन्यत्र फ्लैट में भिजवा दिया कि वह उसे आगामी लोकसभा का टिकट उसे अवश्य दिलवा देगा और अपनी स्थिति संभालने में जुट गया और राशि से दूरी बनाने की कोशिश करने लगा। राशि अब पार्टी कार्यालय में उसके कैबिन में पहुंच जाती थी।
कुछ महीने बाद लोकसभा चुनाव आए और राशि ने फिर वहीं दबाव का हत्थकन्डा अपनाया। पार्टी ने ओंकार नाथ की एक ना सुनी और उसे कहीं का कोई टिकट नहीं मिला। राशि ने इस टिकट के लिए ओंकार नाथ के साथ तीन वर्ष निवेश किए थे। एक-एक घटनाक्रम याद करते राशि आपे से बाहर हो गई राशि ने पार्टी कार्यालय में ओंकारनाथ के कैबिन के बाहर गलियारे में कपड़े उतार दिए और जोर से ओंकार नाथ पर उत्पीड़न के आरोप लगाने लगी। राशि की आवाज सुन सभी नेता अपने- अपने कैबिन छोड़ गलियारे आ गये। राशि जोर- जोर से ओंकार नाथ को गालिंया निकाल रही थी कि इस बुढ्ढे ने टिकट का लालच देकर उसके साथ तीन साल तक ब्लात्कार करता रहा । किसी तरह से वंहा सिक्योरटी वाली महिंलाओं ने राशि को संभाला और उसे घर पहुचा दिया । यह किस्सा चूंकि पार्टी के वरिष्ठ व जिम्मेदार नेता से जुड़ा था तो दबा दिया गया। बाहर कोई खबर भी न निकली। मानसिक रोगी महिला का खिताब देकर राशि को पार्टी मुख्यालयल के गेट के बाहर ही रखने की हिदायत जारी कर दी गई। उसका वंहा पहुचंना असंभव कर दिया गया।राशि वापिस अपने घर लौट गई। किसी नेता ने नंदिनी को राशि के बारे में बताया तों नंदिनी को बहुत पीड़ा हुई। वह राशि को उसके घर से जंहा पर वह निढ़ाल पडी थी कुछ दिन के लिए अपने घर ले आई ।और राशि की मानसिक इतने खराब थी कि उसे मनोचिकित्सको के पास ले जाना पड़ा ।
नंदिनी राशी को अनेक धार्मिक स्थलों पर ले जाती ताकि उसका माहौल बदले व स्वस्थ हो जाए । धीरे –धीरे राशि के स्वास्थय में सुधार होने लगा । नंदिनी उसे धर्म गुरूओं के व्याख्यान सुनाती । जहां राशी के खुद को सामान्य महसूस करती । नंदिनी राशी को उसके घर छोड़ने के लिए जा रही थी तो रास्ते में महान दार्शनिक विद्वान सन्त सुरनन्दन जी का आश्रम पड़ता था। नंदिनी उन्हे व्यक्तिगत रूप से जानती थी ।और कभी कभार दार्शनिक व अध्यात्मिक चर्चा के लिए उनके पास जाया करती थी। सुरनन्दन स्वामी बहुत तेजस्वी सन्त थे । भागवत कथा वाचकों मे वे राष्ट्र भर में श्रेष्ठ थे। उनके रूप में पौरूष मे, वाणी में, देह में, आचरण में अतुलनीय आकर्षण था। वह सैकडों मील फैले लंबे चौड़े आश्रम में एक साधारण सी कुटिया में रहते थे। स्वामी जी के संस्थान के अन्तर्गत अनेक मेडिकल कॉलेज, तकनीकी संस्थान, विदाल्य, बाल आश्रम इत्यादी आते थे। अनेक शहरों व विदेशों में भी स्वामी जी के आश्रम थे। नंदिनी ने राशि को स्वामी जी के बारे मे बताया और उनसे मिलवाने के लिए रास्ते मे रूक गई। एक बड़े हॉल कमरें में स्वामी जी बड़ी विद्धता से श्रद्धालुओं के प्रश्नों का उत्तर दे रहे थे। नंदिनी राशि को लेकर पीछे पंक्ति में बैठकर वार्तालाप सुनने लगी । स्वामी जी कुछ देर बाद नंदिनी को इशारे में बुलाकर आने का प्रायोजन पूछा। नंदिनी ने राशि का परिचय करवाया और राशि को दीक्षा देने का आग्रह किया। स्वामी जी ने आर्शिवाद दिया। और वे दोनों घर की ओर चल दी ।
राशि अब स्वामी जो के आश्रम में हर दिन पहुचंने लगी। आश्रम की सफाई करती, भजन किरतन करती व प्रवचन सुनती। राशि हमेशा अन्तिम पंक्ति में बैठकर स्वामी जी को एक टक निहारती। अनेक बार स्वामी जी की नजरें राशि तक पहुंचती और नियंत्रण में रहती। यह सिलसिला महीनों चलता रहा आखिर कितने दिन तक नियंत्रण रह पाता। राशि की आंखो का निमन्त्रण स्वामी जी समझने लगे थे और स्वामी के मन का सिंहासन जगह से खिसकना शुरू हो गया। राशि पिछली पंक्ति से अब धीरे धीरे अग्रिम पंक्ति में बैठने लगी थी। आश्रम में राशि विशेष शिष्या का दर्जा पा गई। स्वामी जी विभिन्न आयोजनों के व्यवस्थापन में राशि की मदद लेने लगे। राशि की अनुपस्थिति भी स्वामी जी को उद्देलित करने लगती। स्वामी जी के शिष्यों मे प्रधानमंत्री स्तर के नेता भी थे। जो कभी कभार स्वामी जी का आर्शिवाद लेने आते थे। जिन नेताओं को राशि चाह कर भी मिल नहीं पाई थी वह स्वामी जी के चरण स्पर्श कर खुद धन्य हो रहे थे। अनेक राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय स्तर के अधिकारी नेतागण स्वामी जी के सानिध्य मे थे। स्वामी जी के अनुयायियों की संख्या लाखों मे थी। राशि को लगा कि वह अब ठीक जगह पहुंच गई है। उनकी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं फिर से हरी हो गई थी। इस से पहले की राशि स्वामी के आत्म नियंत्रण के किले को भेदने का चक्रव्यूह रचती। स्वामी जी ने राशि को स्वंय ही बुला लिया। और अपने साथ अमेरिका मे हो रहे उनके समागम मे साथ चलने का आग्रह किया। राशि को बिना प्रयास किए ये अवसर हाथ लग गया था।
राशि ने उत्साहित होकर उड़ान भरी।दस दिन अमेरिका की यात्रा की। एक दिन सुबह चार बजे ही स्वामी जी राशि के कमरे में पहुंचे और याचक की तरह जमीन पर बैठ गए और राशि से अपनी बात रखने की इजाजत मांगी। राशि हैरान हो गई वह तो स्वामी जी को अपनी देह का गुलाम बनाने की सोच रही थी और उसे एकान्त अवसर नहीं मिल रहा था। वह स्वामी जी को अपने कमरे में पाकर चौक गई। आज का स्वामी यशस्वी पुरूष न होकर एक नीरीह बेबस पुरूष था जो राशि से एक पुत्र उत्पन्न करने की भीख मांग रहा था। स्वामी ने राशि को बताया कि उसकी अरबों की सम्पत्ति का वारिस कोई नहीं है और वे बाल ब्रह्मचारी हैं इसलिए संतान नहीं है और वे अपने आश्रम के उत्तराधिकारी चाहते हैं जिसे राशि को अपनी कोख से पैदा करना होगा और उस बच्चे को आश्रम में दान करना होगा। चूंकि राशि शादीशुदा है व आश्रम की शिष्या भी है तो किसी को शक नहीं होगा। बदले में स्वामी जी राशि को किसी भी उपयुक्त लोक सभा से किसी प्रभावशाली सत्तासीन पार्टी का टिकट दिलवा देंगे और चुनाव लड़ने का खर्चा, अपने अनुयायों के वोट व श्रम उसे प्रदान करेंगे व जितवाने की जिम्मेदारी भी उठाएंगे। राशी की तो मन की मुराद पूरी हो गई । उसे यह सौदा फायदेमन्द लगा और उसने स्वामी जी से पक्का वायदा कर लिया । स्वामी जी ने भारत लौटकर 6 महीने का राशि का लंदन का वीजा लगवाया और स्वयं भी लंदन के लिए निकल गए। तीन महीने निरन्तर प्रयासों से राशि के गर्भ में स्वामी जी का अंश पहुंच चुका था और स्वामी की गद्दी का वारिस इस दुनिया में आने की तौयारी में था। राशी तभी भारत लौट आई । स्वामी जी तीन महीने बाद भारत लौटे । राशि को अत्यन्त सुन्दर पुत्र हुआ और सियासत सुख दौड़ में अंधी मां ने उस बच्चे को स्वामी की गोद में डाल दिया जो अब आश्रम में पलने लगा था। वक्त आने पर स्वामी ने सत्तासीन पार्टी के अध्यक्ष को राशि के लिए टिकट का आग्रह किया व पार्टी को दस करोड़ का चन्दा भी दिया। राशि को चुनाव जितवाया व संसद में भेज दिया।
राशि की इस कामयाबी से राजनेताओं की भीड़ स्वामी जी के आश्रम में और भी बढ़ गई कि स्वामी जी का आर्शिवाद तो किस्मत लिख देता है। राशि केन्द्रीय मन्त्री बन गई और अकसर टेलिविजन पर उसके साक्षात्कार प्रसारित होते रहे ।जंहा वह अपने सर्घंष की मनगढ़त कहानिंया दर्शकों को परोस रही होती वही राशि देश के अग्रणी राजनेताओं की श्रेणी में पहचानी गई ।नंदिनी की असमय ही हदय गति रूकने से मौत हो गई थी। नंदिनी के पति डॉ विश्वास ने राशि को फोन पर सूचना देनी चाही तो नंदिनी को पहचानने से भी इनकार कर दिया ।कि वह इस नाम की महिला को कभी जानती ही नही थी।इसलिए किसी अपरिचित से बात करना सम्भंव नही है।
लेखक
सुनीता धारीवाल जांगिड

disclaimer -इस रचना की कथा एवँ इसमें वर्णित सभी पात्र ,एवँ स्थान के नाम पूरणत्या काल्पनिक हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें