मंगलवार, 17 नवंबर 2015

सारा आलम धुला धुला सा है


सारा आलम धुला धुला सा है
आह ठन्ठी में पानी बरसा है
धूल की महीन सी परते थी
उनकी भी अपनी शर्ते थी
कि तुम आओ तो संग चलूं
घुल जाऊं मैं जब तुम से मिलूं
अब आए हो तो सर आखों पर
देखो मैं मिटती जाती हूं
तुम पत्तो पर गिरते जाते हो
मैं संग सरकती जाती हूं
सब पत्ते हरे हरे अब हैं
सब आलम धुला धुला है
———————–शेष फिर
आज के लिये इतना ही जरा बून्दा बान्दी निहार लूं

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