मंगलवार, 17 नवंबर 2015

ओ प्रहरी

(मेरे अपने दामाद सैन्य अधिकारी देवेन्द्र को सादर सर्मिपत)
ओ प्रहरी
तुम जगते हो सरहद पर
तभी तो मैं सो पाती हूं
सपनो की चादर ओढ कर
इत्मीनान के साथ
तुम नहीं मनाते तीज
तभी तो झूलती हूं मैं
सावन में झूले
चन्दन की पटड़ी पर
रेशम की डोरी के साथ
तुम नहीं पहनते रंगीन
तभी तो मैं रहती हूं रंगो में लिपटी
सतरंगी पोशाको के साथ
तुम नहीं देखते कोई फिल्म
तभी तो मैं कर पाती हूं
बैखौफ अभिनय
लाईट ,कैमरा, एकशन के साथ
तुम नहीं कर पाते स्नान
तभी तो मैं कर पाती हूं
सोलह श्रृगांर
नित नए नवीनतम
फैशन के साथ
तुम नहीं जला पाते दीपावली का दीया
तभी तो मैं सुलगा पाती हूं
होलीका की भीष्ण अगिन
मूंगफली-तिल और गुड़ के साथ
तुम नहीं छू पाते अपने बच्चों के कोमल गाल
तभी तो मैं आलिंगन कर पाती हू अपने
पोता पोती और दोहता दोहती को
ममता की खूशबू के साथ
ओ प्रहरी
मैं खूब समझती हूं
सीमाओं के कहर
और तपती झुलसती दोपहर
मजबूरीयां सेनानी की
आंखें मूंदती सता की मनमानी भी
मैं जानती हूं तुम्हें
तुम वीर हो
मेरे देश के रक्षक हो
आन बचाते हो
बचा लोगे तुम उसे भी
हां उसी को
जो मेरी परछाई है
दहेज के दहकते दावानलो से
समूहों मे झपटते बलात्कारियों से
घरेलू हिंसा और प्रताड़ना से
कपटी और शातिरों की झूठी सराहना से
हां उसे
जो मैनें सौंप दी है तुम्हें
पूरे विश्वास के साथ
तुम्हारे साथ रण का ताप झेलने को
तुम्हारे साथ चन्द खुशियों के पल निर्माण करने को
तुम्हारे जैसे ही वीर सन्तान उत्पन्न करने को
तुम्हारे नाम का सिन्दूर या धवल पहनने को
ओ प्रहरी
मत समझना कि रण में अकेले हो तुम
मैं मिलूंगी तुम्हें वहां भी
तुम्हारी पलकों पर जमी धूल की परत में
तुम से टकराती ठिठुरन भरी हवाओं की नमी में
बम गोलों के शोर में गुनगुनाती सी मिलूंगी
तुम्हारे जूते से जो टकराऐंगे कंकर पत्थर वो मैं हूंगी
तुम्हें मैं बन्कर की गहराई में मिलूंगी
रेत की बोरी के रेशों में मिलूंगी
तुम्हे मैं तुम्हारी बन्दूक की धातु में मिलूंगी
तुम्हारे पास जो होगी झाड़ी उसके तिनको में मिलूंगी
तुम्हें मैं तुम्हारी प्यास के अहसास में मिलूंगी
जो भी खाओगे उस भूख की तृप्ति के आभास में मिलूंगी
सदा रहूंगी तुम्हारे आसपास
और दूंगी तुम्हें ढेरों आर्शीवाद
मै रणचनडी बन तुम्हारा कवच रहुंगी
शिकसत कभी तुम्हे अपना मुंह नही दिखाएगी
मौत तुम से डरकर सरपट भाग जाऐगी
तुम्हे ले आऊगी मैं विजय रथ पर
तुम्हे तुम्हारी मां के पास
करूंगी मंगल कामना और इन्तज़ार
ओ वीर अगले जन्म
तुम जन्मना मेरी कोख से
इसी भारत भूमी में
फिर से एक बार
प्रहरी होने के लिए

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