मंगलवार, 17 नवंबर 2015

सबला


जब हो मझदार में नैय्या
घिर आऐ घोर अंधियारा
और आस का छिप जाऐ सूरज
दिखता न हो दूर किनारा
तभी डोलती नाव से ऐक सहमी सी
आवाज आती है डरो मत
मैं किनारो का पता जानती हूं
और उठ खड़ी होती है
बुलन्द हो नाव का चप्पू ले
तूफानो से नजर मिलाती है
और किनारो से आलिगंन करती है
सफलताओं का उत्सव मनाती है
यही सबला होने का गीत है

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