मंगलवार, 17 नवंबर 2015

सफर में मैं हूं या सफर मुझ में हैं


सफर में मैं हूं या सफर मुझ में हैं
लगता है दोनो ही रफतार में हैं
न मन्जिल का पता न ही सारथी है कोई
जाने कैसे पहुचीं- इस बेसुध सी कतार में हूं
कोइ मन्दिर कोइ मस्जिद का पता देता है
मैं तो एक रौशनी के बुखार में हूं
शेष फिर कभी
-सुनीता धारीवाल

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