मेरे पिता स्वर्गीय श्री वेद प्रकाश जांगड़ा जी की स्मृति में चली आई शब्द माला
ओ मेरे प्यारे पापा
तुम ही तो थे मेरे जीवन के
सबसे श्रेष्ठ पुरूष मित्र
मैं और तुम ,तुम और मैं
मेरी दुनिया सब तुम्हारे ईर्द गिर्द
तुम ही तो थे मेरे जीवन के
सबसे श्रेष्ठ पुरूष मित्र
मैं और तुम ,तुम और मैं
मेरी दुनिया सब तुम्हारे ईर्द गिर्द
कहां भूल पाई मैं
तुम्हारे स्कूटर पर
तुम्हारी टांगों के सहारे सटी
दोनो हाथ फैलाई मैं
तुम्हारी स्पीड के साथ
जूम्म्म जूम्म जूम्म की
आवाजें निकालती मैं
हर मोड़ पर पूरा झुक जाती मैं
हवाई जहाज बन जाती मैं
जैसे सारी दुनिया घूम जाती मैं
तुम्हारे स्कूटर पर
तुम्हारी टांगों के सहारे सटी
दोनो हाथ फैलाई मैं
तुम्हारी स्पीड के साथ
जूम्म्म जूम्म जूम्म की
आवाजें निकालती मैं
हर मोड़ पर पूरा झुक जाती मैं
हवाई जहाज बन जाती मैं
जैसे सारी दुनिया घूम जाती मैं
अब भी याद है मुझे
तुम्हारा मुझे हर रोज स्कूल छोड़ना
किसी भी लाल बत्ती पर रूकना
और बस मुझे ही देखते जाना
अपनी जेब से जादुई कन्घी निकालना
हवा में उलझे मेरे बाल संवारना
लाल बत्ती पर रूकी भीड़ से बेपरवाह
बस मुझसे ही बातें करना, मुझे ही निहारना
फिर मेरा बस्ता उठाना ,स्कूल छोड़ आना
आखों से ओझल होने तक
मेरी तुम्हारी टाटा बाय ,कहां भूल पाई मैं
तुम्हारा मुझे हर रोज स्कूल छोड़ना
किसी भी लाल बत्ती पर रूकना
और बस मुझे ही देखते जाना
अपनी जेब से जादुई कन्घी निकालना
हवा में उलझे मेरे बाल संवारना
लाल बत्ती पर रूकी भीड़ से बेपरवाह
बस मुझसे ही बातें करना, मुझे ही निहारना
फिर मेरा बस्ता उठाना ,स्कूल छोड़ आना
आखों से ओझल होने तक
मेरी तुम्हारी टाटा बाय ,कहां भूल पाई मैं
कितने साल चला यह सिलसिला अनवरत
कहां सचिवाल्य कहां सैक्टर बत्तीस
कभी नही चूके तुम अपना लन्च छोड़ कर
जब भी लेने आते मुझको मेरी रगंत रंग जाती
कहां सचिवाल्य कहां सैक्टर बत्तीस
कभी नही चूके तुम अपना लन्च छोड़ कर
जब भी लेने आते मुझको मेरी रगंत रंग जाती
मेरे मुलायम बालों ने अब आकार ले लिया था
मम्मी के हाथों से गुन्थी रिब्बन वाली चोटियों का
तुम तब भी मेरे खुले रिब्बन के छोटे बड़े फूल बनाते रहे
हर लाल बत्ती पर गून्थते रहे मेरी अकसर खुली चोटियां
गोल मोल अजब गजब होती थी घूमघुमाती चोटियां
ऱिब्बन के फूल तो जैसे थे मम्मी की पहेलियां
कैसे लपक कर गोद में उठाते थे मुझे
और टांग लेते थे अपने कन्धों पर मेरा बस्ता व वाटर बौटल
मम्मी के हाथों से गुन्थी रिब्बन वाली चोटियों का
तुम तब भी मेरे खुले रिब्बन के छोटे बड़े फूल बनाते रहे
हर लाल बत्ती पर गून्थते रहे मेरी अकसर खुली चोटियां
गोल मोल अजब गजब होती थी घूमघुमाती चोटियां
ऱिब्बन के फूल तो जैसे थे मम्मी की पहेलियां
कैसे लपक कर गोद में उठाते थे मुझे
और टांग लेते थे अपने कन्धों पर मेरा बस्ता व वाटर बौटल
नही भूलता मुझे तुम्हारे संग नहाना
नाली में कपड़े ठूंस ठूस तेज पानी चलाना
पिछले आंगन पानी की निकासी रोक
होम मेड स्विमिंग पूल बनाना
मेरे सिर पर साबुन लगाना पर मेरी आंखे बचाना
अब भी याद है मुझे
चन्डीगढ में बारिश का आना
तुम्हारा मेरे लिये कागज की नाव बनाना
सड़क पर मेन होल की तरफ तेजी से बढते
बरसाती पानी मे मेरी नाव चलाना ,मुझे सिखाना
मेरे साथ भीगना मेरी नाव पकड़ कर लाना
नाली में कपड़े ठूंस ठूस तेज पानी चलाना
पिछले आंगन पानी की निकासी रोक
होम मेड स्विमिंग पूल बनाना
मेरे सिर पर साबुन लगाना पर मेरी आंखे बचाना
अब भी याद है मुझे
चन्डीगढ में बारिश का आना
तुम्हारा मेरे लिये कागज की नाव बनाना
सड़क पर मेन होल की तरफ तेजी से बढते
बरसाती पानी मे मेरी नाव चलाना ,मुझे सिखाना
मेरे साथ भीगना मेरी नाव पकड़ कर लाना
आज भी याद है मुझे
तुम्हारे साथ सैक्टर सत्तारां में
गणतन्त्र दिवस की परेड देखने जाना
तुम्हारे कदमो से कदम मिलाने
को मैने बस दौड़ते जाना
तुम्हारे कन्धों पर बैठ परेड देखना
दशहरे का रावण जलते देखना
वो कामागाटामारू का मेला
वो इन्दिरा गान्धी के ईन्तजार की कतारें
वो सजंय गान्धी की कार पर पत्थर की बौछारे
तुम्हारे संग ही तो देखी थी इन नन्ही आंखों ने
तुम्हारे साथ सैक्टर सत्तारां में
गणतन्त्र दिवस की परेड देखने जाना
तुम्हारे कदमो से कदम मिलाने
को मैने बस दौड़ते जाना
तुम्हारे कन्धों पर बैठ परेड देखना
दशहरे का रावण जलते देखना
वो कामागाटामारू का मेला
वो इन्दिरा गान्धी के ईन्तजार की कतारें
वो सजंय गान्धी की कार पर पत्थर की बौछारे
तुम्हारे संग ही तो देखी थी इन नन्ही आंखों ने
शेष फिर -यह सहयात्रा मित्रता तो लम्बी चली थी
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