गुरुवार, 5 नवंबर 2015

मसीहा - लघु कथा

मसीहा

बस्ती में केन्द्रीय मन्त्री राष्ट्रीय बिरादरी नेता का आगमन मानो उत्सव था। केन्द्रीय मन्त्री नेता जी रामनिवाला ने बस्ती की कायापलट कर बिरादरी में मसीहा का स्थान सुनिशिच्त कर लिया था।सड़क ,बिजली ,पानी,झुग्गी के बदले पक्के मकान,स्कूल सब कुछ मिल गया था बस्ती वालों को।सड़ान्ध भरी बस्ती शहर की लेबर कालोनी का दरजा पा गई थी मन्त्री जी के कारण। बिरथे चौकीदार की 17 बरस की बेटी रजनी बाला की नजरें तो अपने मसीहा पर से हट ही नहीं थी ।बार बार कृत्ज्ञता के भाव बरस रहे थे। मसीहा नेता जी की नजर रजनी की देह व स्त्री सुलभ चंचलता को कब की भांप चुकी थी।मात्र कुछ ही महीनो बाद जयकारा छुटभैयों व बस्ती प्रधान रामकला की करामात से रजनी बाला मन्त्री जी के हरम मे रह दिल्ली के कालेज में राजनैतिक शास्त्र व हरम में व्यव्हारिक राजनीती पढ रही थी।
महज तीन साल में वह पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की पदाधिकारी बन रौबदाब से रहना सीख गई थी।देह की आंन्च ने दिमाग के सब परदे गला दिए थे।सोच पराधीन व सम्पर्ण के सिवाय कुछ जानना नहीं चाहती थी। मैं और मेरा मसीहा यही दुनिया थी रजनी बाला की।मन्त्री रामनिवाला जी तो अधेड़ थे उम्र पका कर नेता बने थे ।
उन्हे सब दीखता सूझता था वह अनचाही बेनाम सन्तान नहीं वहन कर सकते थे वह भी एैसे समय जब नेताओं की अवैध सन्ताने डी एन ऐ जांच पर सरे बाजार आमादा हो । मन्त्री जी ने उपाय निकाल ही लिया रजनी बाला की दोनो (ओवरीज) अन्डाश्य नलिकाऐं सर्जरी के माध्यम से उसके शरीर से बाहर कर दी गई सदा के लिऐ। आखिरकार ये सब रजनीबाला के हित में ही तो हो रहा था। मन्त्री जी समझा रहे थे कि देखो रजनी जो महिलाऐं सियासत के शिखर देखती हैं वे ऐकाकी होती है शादी वादी गर्भ शर्भ के फालतू पचड़ो में नही पड़ती । देखो मायावती ,जयललिता ममता बैनर्जी सब अकेली हैं तभी तो सफलताऐं देख पाई। ओवरीज की आहुती तो बहुत छोटी है इस देश के लिये, तुम्हारे अपने सपनो के लिऐ। आखिर मुझ से ज्यादा तुम्हारे बारे में कौन सोचेगा मेरे बिना ।
रजनी भी कहां विरोध कर पाई थी ।अब तो सब कुछ बिना डर भय के आसानी से हो रहा था न गर्भ का डर न गर्भपात का झंझट ।
मन्त्री मसीहा के जलसा प्रबन्धन ,रात्री सेवा ,बदन दबाना यौन सुख , आमोद प्रमोद सब रजनी के ही जिम्मे था। उस पर कयामत ये कि रजनी को सार्वजनिक मन्चों से मन्त्री मसीहा जी रजनीबाला को बेटी कह कर सम्बोधित करते थे । लोगबाग प्रशसां करते नही अघाते -मन्त्री जी का बडप्पन देखिये कैसे गरीब कन्या का उद्धार किया ,दिल्ली में उच्च शिक्षा दिलवाई व सम्मान दिया । अनेक गरीब रजनी बाला की तरक्की से प्रेरित हो अपनी बहु बेटियों को मसीहा जी के चरणों में प्रणाम करने लाते । उनके चरणों की धूल माथे पर लगाते। मन्त्री जी के हाथ ओवरीज टरमिनेशन का अचूक नुस्खा जो हाथ लग गया अब हरम में औरतो की संख्यां बढाने पर मन लालायित रहने लगा।दो वर्ष बाद एक दिन अचानक रजनीबाला मन्त्री जी के कमरे अचानक दाखिल हुई ही थी ठिठक कर अवाक खड़ी रह गई मन्त्री जी डाक्टर साहिब को एक अन्य युवती का ओ0 टी0(ओवरीज टरमिनेशन) करने का आदेश दे रहे थे। दरवाजे पर आहट की भनक पाते ही मन्त्री जी वार्ता का विषय बदल चुके थे । रजनीबाला की आखों के आगे अन्धेरा परन्तु कानों व आंखो पर पड़े परदे हट चुके थे। अब दुनिया बदल गई थी सम्मान की जगह तिरस्कार ,लान्छन जैसे सब अलंकार मिलने लगे थे ।धीरे धीरे धर से फिर पार्टी से उसे बाहर का रास्ता दिखा दिया गया ।पूरे सात बरस बाद वह फिर से ऐक बार मैली कुचैली झोपड़ पट्टी बस्ती में थी ।उस ने सच का आईना दिखाया था पर उस में खुद का चेहरा लहुलुहान पाया था ।किसी ने भी उसका यकीन नही किया उलटा उस पर वरिष्ट नेता की मानहानी करने के आरोप में पार्टी से निकाला मिला। माता पिता व समाज ने उसकी बात पर यकीन नहीं किया ।हां मन्त्री जी ने सब जगह यकीन करवाया कि रजनीबाला बदचलन,अहसान फरामोश ,विरोधियों के हाथों बिक चुकी ,अति महत्वाकांक्षी औरत थी जो सत्ता के लिऐ नीचता व पागलपन की हद तक पहुच चुकी थी ।ऐसी औरतें नारी जाति का अपमान है।इनका सार्वजनिक बहिष्कार करना चाहिय़े।और वह बहिष्कृत जीवन ढो रही है रोज प्रार्थना करती है कि कोई मसीहा उसकी बस्ती न आऐ।आऐ तो बस वह समय आऐ कि वो खुद मसीहा बन जाऐ।

सुनीता धारीवाल

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