गुरुवार, 5 नवंबर 2015

महिला सशक्तिकरण आखिर है क्या ?चलो समझे ज़रा -लेख

आज वर्तमान अन्तराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में किसी भी देश की महिलाओं का
सशक्त होना ही देश का सशक्त होना है। यह विचार आज सामयिक व सार्वभौमिक है
जिसका सभी राष्ट्र चिन्तन कर उपाय भी करने को प्रयासरत है। भारत जैसे
विकासशील देश में तस्वीर तेजी से बदलती हई दिखाई देती है। विशाल जनसंख्या
वाले देश में आधी आबादी को सशक्त करना बड़ी चुनौती है। प्रयासों से
परिवेश व आज की भारतीय महिलाएं बदल रही है। दो दशक पहले से कहां अधिक
जागरुक साहसी व प्रयत्नशील दिखाई देने भी लगी है। महिला सशक्तीकरण एक
प्रक्रिया है जो अब महसूस होने लगी है। शहरों में महिलाओं ने अपनी
उपस्थिति व आवाज का अहसास करवाया है वहीं ग्रामीण क्षेत्रों में भी अपवाद
स्वरुप सशक्त होते चेहरों को पहचान मिलने लगी है।
पराधीनता को स्वीकारने की स्थापित व्यवस्था के विपरित स्त्री स्वर मुखर
होते हर काल में सनाई दिए है। इतिहास में भी इस परिवर्तित मानसिकता ने
कहीं-कहीं स्पष्ट लघु हस्ताक्षर किए है। आज भी महिसा शक्ति संघर्ष का यह
विषय बेहद सामयिक व ध्यान देने योग्य है। भारतीय पारम्परिक संस्कृतिवश
महिलाओं की सोच का विकास भी पराधीन रहा है इसलिए सम्पूर्ण सशक्तिकरण में
अभी वक्त लगेगा और सांस्कृतिक वर्जनाएं तोड़ने में मानसिक श्रम व शारीरिक
श्रम का दोहन करना होगा और तत्पश्ताप प्रतिक्रिया सहने के लिए धैर्य की
परीक्षा महिलाओं को ही देनी होगी। आज की महिलाएं ये जान चुकी है कि सबल
मनः स्थिति में ही साहस जन्म ले सकता है, साहस अपनी उपस्थिति को दर्ज
करवाएगा। इसलिए सशक्तिकरण की ओर अग्रसर महिलाओं की संख्या बढ़ने लगी है।
सशक्तिकरण एक प्रक्रिया है जिसमें शक्ति निहित है जिसका तात्पर्य हमारी
उस क्षमता और गुणा से है जिसके प्रयोग से हम किसी व्यक्ति अथवा समूह को
उसकी स्वंय की इच्छा के विरुद्ध या उसके स्वंय के हितों के प्रतिकूल कुछ
करने या कुछ ना करने के लिए प्रेरित करते है अथवा बाध्य करते है।
यह एक मानसिक अवस्था है जिसमें व्यक्ति सशक्त के अधीन कार्य करने लगता
है, निशक्त आदमी सहज ही विश्वास करता है कि शक्तिवान उसे पुरस्कृत कर
सकता है। उसे व्यक्तिगत फायदा पहुंचा सकता है अथवा यह विश्वास करता है कि
सशक्त उसे दण्ड दे सकता है उसे व्यक्तिगत हानि पहुंचा सकता है। वह अपने
इस विश्वास के कारण सशक्त के नियंत्रण में व्यवहार करने लगता है न कि
सशक्त की वास्तविक क्षमता के कारण। मानव स्वभाव से ही भौतिक संसाधनों एंव
बौद्धिक संसाधनों पर निंयत्रण स्थापित कर तुष्ट होता है व अन्य मनुष्य के
व्यवहार पर निंयत्रण स्थापित कर सशक्त और शक्तिवान महसूस करता है। अधिकतर
महिलाएं प्रायः इस अहसास से वंचित रही है।
आमतौर पर वैधानिक शक्तियां, सामाजिक मूल्यों व नियमों की शक्तियां,
विशेषज्ञ शक्तियां व बौदिॢक अथवा अध्यात्मिक शक्तियां व दैहिक शक्तियां
ही आज की व्यवहारिक शक्तियां है। जिन से दूसरों के व्यवहार आचरण पर
नियंत्रण स्थापित होता है।
राज शासन में भागीदारी से संवैधानिक शक्तियां प्राप्त होती है। इस
क्षेत्र में भी महिलाएं साहस दिखाकर संर्घष कर रही है और कानूनी
प्रावधानों ने भी रास्ते बनाए है। आंशिक सफलताएं भी प्राप्त हुई है।
अपवाद स्वरुप सोनिया गांधी व सुश्री मायावती को छोड़कर चाहे आज सवैधानिक
शक्तियां प्राप्त महिलाएं अपनी वर्जित शक्तियों का उपयोग स्वतंत्रता से न
कर पाती हो परंतु शक्ति का अहसास व समझ जरूर बनी है। विशेषज्ञ शक्तियों
में महिलाएं किसी विशेष विषय अथवा क्षेत्र में दक्षता व कुशलता जुटाती है
और उसके ज्ञान व कौशल पर आश्रित व्यक्ति उस विशेषज्ञों के नियंत्रण में
व्यवहार कर शक्ति का अनुभव करवाते है। शिक्षा के अवसर के समानता ने दक्ष
महिलाओं की फेहरिस्त को बढ़ाया है व कोरपोरेट जगत व विज्ञान में भी
महिलाओं का पदार्पण हुआ है।
दैहिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत खूबसूरत देह श्रृंगार व उसकी आर्कषक भाव
भागिमाएं है। यह शक्ति सुपर माडल, फिल्म की अभिनेत्रियों व खूबसूरत महिला
खिलाड़ियों को भी प्राप्त होती है। जिससे अन्य उनके जैसे बनने को प्रेरित
होती है उनके नियंत्रण में व्यवहार करने लगते है। यह सौंदर्य भी शक्ति का
अनुभव करवाता है। सामाजिक मूल्यों व नियमों द्वारा स्थापित शक्तियां
हमारे देश में महिलाओं को प्राप्त नहीं है जैसे पुरूष को महिला की
मलिकाना शक्ति प्रदान की गई है जिसके अनुसार पत्नी पति को सशक्त मानकर
उसके नियंत्रण में व्यवहार करती है। ऐसी सामाजिक मान्यताएं व्यवहार पर
नियंत्रण स्थापित कर शक्ति का अनुभव करवाती रही है। अध्यात्मिक शक्तियों
के अनुभव में महिलाओं ने भी सेंध लगाई है धर्म गुरूमां, अध्यात्मिक
गुरूमां, धार्मिक वक्ता, महिला आचार्यों ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज करवा
दी है। भारतीय समाज में प्रभु सर्व शक्तिवान है व हमारी मान्यता है कि
अध्यात्मिक व्यक्ति हमारा अच्छा या बुरा करने में सक्षम होते है क्योंकि
वे प्रभु की शक्तियों को आहवान से, साधना से प्राप्त कर लेते है।
धन शक्ति का अनुभव भी स्वरोजगार युक्त व्यवसायी महिलाएं कर रही है और
धनवान पुंजीपति महिलाएं भी अपने आश्रितों के व्यवहार पर निंयत्रण कर रही
है। धन शक्ति को भी सामाजिक मान्यता प्राप्त है व निशक्त यह मानता है कि
धन शक्ति द्वारा कुछ भी करना संभव होता है और धन खुश होने पर पता नहीं
क्या पुरस्कार दे सकता है और नाराज होने पर कुछ दण्ड दे सकता है धन की
प्रचुर उपलब्धता सभी प्रकार के साधन खरीद सकती है।
उपरोक्त सभी प्रकार की शक्तियों से प्रबल सत्ता शक्ति है जहां महिलाओं की
शक्ति अनुभव का अभ्यास अपर्याप्त है। जिस प्रकार कहावत है कि पैसा पैसे
को खींचता है उसी प्रकार शक्ति शक्ति को खींच कर महाशक्ति बन जाती है।
ज्यादातर सौंन्दर्य शक्ति, विशेषज्ञता शक्ति, धन शक्ति, अध्यात्मिक शक्ति
व सामाजिक शक्ति युक्त महिलाओं को सत्ता शक्ति के अवसर पुरूष विवेकाधीन
प्राप्त हो जाते है। पूर्व स्थापित सवैधानिक शक्ति युक्त पुरूषों की
पत्नी या बेटियों की भी सत्ता शक्ति प्राप्त हो जाती है परंतु एक सीमा
तक।
आज शक्ति पा जाना व्यवस्था में है परंतु सत्ता शक्ति का स्वतंत्रता
शक्ति से उपयोग कर पाना आज भी उपलब्ध नहीं है। सत्ता शक्ति का प्रयोग आज
भी पराधीन है। अधिकतर जनता भी महिला पक्ष में जनमत बनाने से पहले विचार
करती है कि उक्त महिला को किन-किन शक्तिवान पुरूषों का संरक्षण प्राप्त
है। महिलाओं का संघर्ष, उसकी क्षमता, उनका परिश्रम जनमत की प्राथमिकता
में नहीं है। अपितु उक्त महिला की शक्ति उपयोग करने वाले व नियंत्रकों को
देखकर जमनत तैयार होता है।
सत्ता में महिलाओं की क्षमता के प्रति सन्देह, उन्हें कमतर आंकना,
स्थापित पूर्व धारणा है जो महिलाओं के मानसिक बाधाओं को जन्म देती है।
महिला जाति को पूर्ण रुपेण सशक्त करने हेतु अभी भी अधिक कानूनी, सामाजिक,
मनोवैज्ञानिक, आर्थिक, भौतिक व सांस्कृतिक प्रावधानों की आवश्यकता है जो
उन्हें पुरूषों के समान एक व्यक्ति के रुप में पहचान दिला सके। मान
सम्मान व्यक्तिवाद के सभी अवसर उपलब्ध करवा सके। महिलाओं के प्रति फैली
भेदभाव पूर्व, पूर्वाग्रह ग्रसित सामाजिक रुढ़ियों, अंधविश्वासों,
परंम्पराओं व मूल्यों में बदलाव ला सके। महिलाओं के समस्त चल-अचल
सम्पतियों तक पहुंच उनका अपयोग न नियंत्रण का अधिकार दिला सके। जो
महिलाओं को अपनी इच्छानुसार व्यवसाय चुनने, आय वर्जित करने, उपयोग करने
का हक दिला सके। सभी मनोवैज्ञानिक बाधाओं से मुक्त करवा सके। निर्णय लेने
का प्रक्रिया में उनकी हिस्सेदारी व बराबरी प्रतिनिधित्व करने का हक दिला
सके। महिलाओं के विचारों व निर्णयों को पुरूषों के निर्णय के बराबर महत्व
दिला सके और जो महिलाओं पर नियंत्रण रखने की मानसिकता से छुटकारा दिला
सके।
सशक्तिकरण ही यह प्रक्रिया निरन्तरता जारी है। कहीं मन्द गति से कहीं
आवेग से। आईए स्वागत करें उन दरवाजों का जहां से अधिकाधिक संघर्ष व सफलता
की ओर बढ़ती महिलाओं के पदचाप सुनाई दे रही है।

लेखिका-सुनीता धारीवाल

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