सफर सिरफिरा है
बिन पगडण्डियोँ के भी रास्ते गिन रहा है
मंजिल बेआवाज़ है फिर भी शोर सुन रहा है
सफर सिरफिरा है
सरक सरक सरक नई राहे चुन रहा है
अकेला है दिशाओ से रिश्ते बुन रहा है
सफर सिरफिरा है
गोल गोल गोल खुद अपना सर धुन रहा है
शेष फिर
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
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