शनिवार, 5 मार्च 2016

मेरा पहला घर और मैं

मेरा पहला घर और मैं,कितना कुछ था मेरे आसपास और मेरे छोटे से घर में जो बनाया होगा पांच छह वर्ष की आयु में मैंने अपने नन्हे हाथो से
मैं रंग बिरंगी तितली
मैं टिम टिम करता जुगनू
मैं हरा राम का घोड़ा
लाल शनील का घोड़ा
काला सा गाता भंवरा
मंद मंद सरकता घोंघा
हेलीकाप्टर वाला कीड़ा(dragon फ्लाई)
छोटी सी नारंगी मछली
घघ्घर का चिकना पत्थर
मैं कच्चे आम की अम्बी
चिपका सा कोई लह्सुडा
मैं घास का मीठा तिनका
कीकर के कांटो की छोटी टहनी
गुडिया का कोई लिबास
दर्जी की कोई कतरन
टूटे किसी कांच का टुकड़ा
फूटे किसी मटके का टुकड़ा
गोल आकार के कई पत्थर
कंचो का कोई झोला
कुल्फी का कोई तिनका
रंगीन मीठा कोई बर्फ का गोला
पानी की टंकी की छावं
समुदी झाग के कई टुकड़े
रंग बिरंगी मीठी गोली
कितने रंग बिरंगे पंख
कितना कुछ था तब भी
मेरे छोटे से घर में
जो बनाया था मैंने
थे टूटी सी चटाई के टुकड़े
घर की सीढ़ियों के बीच थड़े पर
रौशनी आने को छोड़ी गई
कुछ ईंटो के बीच
उन्ही ईंटो के पीछे रखे थे
माँ ने गुल्झट बालो के गुच्छे
कितना कौतुहल था
कितनी जिज्ञासा थी
ये क्या है ?इसका कया करते है ?
फिर खुद भी वही जुटाना
जंगल में निकल जाना
जंगली से कितने फूल
जंगली बेर और फल
अमलतास कचनार के फूल
करोंदे खट्टे खट्टे-लकड़ी के टूटे फट्टे
सड़क पर गिरी सिगरेट की खाली डिब्बी
से निकाल चमकीला चांदी सा कागज़
बनायीं थी उसकी भी मेज अलमारी भी
कितने थे मेरे पडोसी
अंजू ,तोशी ,रंजना ,गुल्लू ,बब्बूपूनम
हर त्यौहार मनाया मैंने
गुडिया का ब्याह रचाया मैंने
तब भी कितनी भरपूर थी
आज भी इतनी ही भरपूर हूँ
कितने घरों की मैं नीवं हूँ
माँ हूँ तभी सजीव हूँ

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