बुधवार, 23 मार्च 2016

तबियत

मत पूछो की तबियत कैसी है 
मुझको न आएगा बताना
कि ऐसी है या वैसी है 
ये चाहे जैसी कैसी है 
बस वक्त की ऐसी तैसी है
हाँ उम्र भी हुई जाती है
रंगत भी पंगत भूल गयी
रंगो से भीगना फाल्गुन में
सावन में झूला भूल गई
काजल की डिबिया सूख गयी
शीशा भी धर के भूल गयी
कभी गीत भी गाया भी करती थी
हर कली अंतरा भूल गयी
कब पैर उठा था गिद्दे में
किसका था मुकलावा भूल गयी
कभी बिन चादर तारो की छावं
थी रात कौन सी भूल गयी
पीहर से ससुराल के बीच
कितने गाँव हैं पड़ते भूल गयी
न याद रहा ताकना उसका
वो कौन था किसका था भूल गयी
साँसों की भूल भुलैया में
मैं सांस ही लेना भूल गयी
जो डोली ले कर आये थे
वो काँधे बदल बदल कर छोड़ आये
दरिया का वही किनारा है
जहाँ बेटा मेरा प्यारा है
जीते जी मरणा याद रहा
मरते जी देना भूल गयी
फिर लौट आई उसी दुनिया में
जहाँ दुनिया मुझको भूल गयी
ये दुनिया जैसी कैसी है
मेरे वक्त की ऐसी तैसी है

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