उकेरा था एक नाम
अपनी कोख की माटी में
वक्त की चोट से
होनी के संहार से
मिल गया धूल में
यादों की बरसात
अब भी आती है रोज
बह जाती है धूल
साफ़ साफ़ दिखने लगता है
कोख की दीवारों पर
मिटने की नाकाम कोशिश करता
एक नाम अंकित मेरा बेटा
वक्त की चोट से
होनी के संहार से
मिल गया धूल में
यादों की बरसात
अब भी आती है रोज
बह जाती है धूल
साफ़ साफ़ दिखने लगता है
कोख की दीवारों पर
मिटने की नाकाम कोशिश करता
एक नाम अंकित मेरा बेटा
सुनीता धारीवाल
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