मां मत अकेला छोड़ना मुझे-
poem on child rape
एक बच्ची जिसका यौन उत्पीड़न एक युवक द्वारा किया गया था मैं उसे मिलने गयी - उसे देखते ही मेरी आत्मा भीतर तक हिल गयी मासूम सी तीन वर्षीया बच्ची जिसे अभी किसी भी प्रकार के यौन उत्पीड़न का पता ही नहीं हो सकता वो बेहद डरी हुई थी एक दम मुझसे लिपट गई और मुझे छोड़ा ही नहीं मेरी छाती से तब तक लिपटी रही जब तक मैं वहां रही -बेहद डरी हुई है -खामोश है -दुर्भाग्य ये की माता पिता नहीं चाहते अदालत में केस किया जाये -पुलिस से शिकायत वापिस ले चुके है -बोले हम दिहाड़ी करेंगे या अदालत में फिरेंगे बच्चे भूखे मर जायेंगे -यदि बच्ची की माँ थोड़ा सा और देर करती तो बच्ची के साथ ज्यादा बुरा हो सकता था -या उस बच्ची की जान ही जाती पर बच्ची के सामने अश्लील क्रिया करना भी जुर्म है -बच्ची के मन पर ताउम्र अंकित रहेगा ये दिन -गरीबी, अज्ञानता ,मजबूरी किस तरह जुर्म को बढ़ावा देती है कितने ऐसे केस है जो समाज में यूँ ही दब जाते हैं
मां मत अकेला छोड़ना मुझे
मां तुम कहां हो मां-मुझे बहुत डर लग रह है
मां तुम कहां हो मां-मुझे बहुत डर लग रह है
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