बुधवार, 23 मार्च 2016

चलो चलें

चल चलें निकलें
किसी अंतहीन यात्रा पर
जहाँ धरती और आसमां 
मिलते हैं किसी छोर पर
और चलो पकाते हैं
अपने ख्वाब
किसी गर्म लावे के अंगारों पर
किसी अनजान सुलगते टापू पर
फिर ठंडा करें उन्हें
छिपा किसी हिमखंड के बीच
और फिर से रख आँखों में
और बढ़ चले उस ओर
जहाँ धरती का चुम्बक चुकता हो
ब्रह्माण्ड धरा अधरों पर झुकता हो
चलो चलें चल निकलें

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