गर सब औरतें भी मस्त मलंग होती
रंग आनंद अनुभव से दंग होती
दुनियादारी जाती किसी भाड़ में
बिन बाधा की कोई तरंग होती
रंग आनंद अनुभव से दंग होती
दुनियादारी जाती किसी भाड़ में
बिन बाधा की कोई तरंग होती
सबरस पर उनका कोई हक़ होता
बरबस हंसने पर न शक होता
बरबस हंसने पर न शक होता
कोई खंजर से छलनी नहीं करता
न कोई जिन्दा को आग लगा पाता
न कोई ये प्रशन उठा पाता
न कोई जिन्दा को आग लगा पाता
न कोई ये प्रशन उठा पाता
तू मस्त हुई भरमाई क्यूँ
छाती से चुनर गिराई क्यूँ
छाती से चुनर गिराई क्यूँ
शेष फिर अभी इतना ही
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