बुधवार, 23 मार्च 2016

आवाज

कुछ दूर चल के क्यों ठहर जाते है मेरे कदम 
जैसे कोई आवाज देता है पीछे से रुको 
मुड़ कर देखती हूँ तो दीखता कुछ नहीं 
तेरे शहर की धुंधली यादो की धूल के सिवाय 
फिर आगे बढ़ जाती हूँ यायावर की तरह 
हर मोड़ पर कुछ आवाजे पीछा करती है
जो शायद चहचहाई होंगी मेरे साथ कभी
कभी सावन की रिमझिम में कही फाल्गुन में
और फिर वो भी चल दी होंगी
नए नीड़ और जलाशयों की तलाश में
और मैं भी निकल गयी हूंगी यायावर जो ठहरी
ठहर जाना कहाँ फितरत है मेरी
मुझको रख ले ताउम्र ऐसी किस्मत कहाँ तेरी

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