अपना ही घर कोई जलाता है क्या
अपनी ही मौत कोई बुलाता है क्या
ये बवाल ये बवंडर ये धुँआ ये राख
है सब क्षितिज की ओर
बरसेगा अब निवेश तेजाब सा
उगेगी फसल भाईचारे की कसैली सी
लिखूंगी मैं भी कुछ यादें मटमैली सी
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
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