शनिवार, 30 अप्रैल 2016

मैं शुद्ध जल





मैं शुद्ध जल
जो भी मिलाया
वैसी हो गई
तुम्हे लगा
शुद्धता खो गयी
आहत हुई
पल पल
संचित हुआ
वही शुद्ध जल
जिसे दूषित किया था
तुमने ही
और  खारा कर दिया था
और वो अब
आँखों से बह निकला है
शुद्ध नहीं रहा
शुद्ध रूप में तो सिर्फ
वह मेरी देह में  ही रह पाता है
आँखों में नहीं


सुनीता धारीवाल जांगिड

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