दुर्गम राहें तो आसां थी
हम राह सुगम पर फिसल गये
हम राह सुगम पर फिसल गये
था शौक बहुत गम खाने का
अपने अरमान भी निगल गए
अपने अरमान भी निगल गए
जो हाथ पकड़ कर सीखे थे
वो कबके हमसे आगे निकल गये
वो कबके हमसे आगे निकल गये
हम रहे रोकते धूप मियां
वो छाँव बाँध कर निकल गए
वो छाँव बाँध कर निकल गए
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