रविवार, 10 अप्रैल 2016

मुझे मन मर्जी दे

वो कहाँ कब मेरी ओर झुका
मैं लिखा समझ कर झुकी रही
इतना अनजान कहाँ है तू
यह मान के मैं तो छुपी रही
जा कर ले जो तूने करना है
इस जन्म का यहीं भरना है
तू दाता है जो मर्जी दे
बस थोड़ी सी खुदगर्जी दे
कुछ कागज़ मेरे फिर से लिख दे
न फेर नज़र ये अर्जी ले
कुछ तो रहता है थोडा ही सही
आखिरी बार मुझे मन मर्जी दे
सुनीता धारीवाल

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