शनिवार, 30 अप्रैल 2016

मैं शुद्ध जल





मैं शुद्ध जल
जो भी मिलाया
वैसी हो गई
तुम्हे लगा
शुद्धता खो गयी
आहत हुई
पल पल
संचित हुआ
वही शुद्ध जल
जिसे दूषित किया था
तुमने ही
और  खारा कर दिया था
और वो अब
आँखों से बह निकला है
शुद्ध नहीं रहा
शुद्ध रूप में तो सिर्फ
वह मेरी देह में  ही रह पाता है
आँखों में नहीं


सुनीता धारीवाल जांगिड

शुक्रवार, 29 अप्रैल 2016

बारिश में भीगूँ या भागूं

बारिश हुई है टूट कर
भीगूँ या भागूँ
या फिर छुप जाऊं
सारे बादल लूट कर
सुनीता धारीवाल

बुधवार, 27 अप्रैल 2016

वही हो रहा है

लिखा है जो 
वही हो रहा है 
न रत्ती इधर न उधर 
बस वक्त
अपने लम्हे पिरो रहा है

सुनीता धारीवाल जांगिड 

पिघलने लगोगे तुम















मत तपाओ
हद से ज्यादा
पिघल कर
ले लूंगी
नया आकार 
और फिर
पिघलने से लगोगे
तुम
-औरत


सुनीता धारीवाल जांगिड

चित्र  -साभार  गूगल 

आँखों से सवाल छोड़े जाते हो

ये क्या 
आँखों से अपनी 
सवाल छोड़े जाते हो 
पगले इस दिल के लिए 
बवाल छोड़े जाते हो ?

सुनीता धारीवाल जांगिड 

औरत खाली भी और अकेली भी

बहुत कुछ होता है 
एक औरत के पास 
धन सम्पति के
के अतरिक्त भी
जिसे लूटने की फ़िराक में 
होता है जहान
जब
वह अकेली होती है
तब
पात्र बन विश्वास का
उकेरते है
परत दर परत
उसका सब
तन मन धन
अब
वो खाली भी होती है
अकेली भी


सुनीता धारीवाल जांगिड 
वो एकतरफी पक्की सड़क
मैं कच्चा रास्ता
सैंकड़ो पगडंडियों वाला
उबड़ खाबड़ झाड़ झंखाड़
अस्त व्यस्त अभ्यस्त
प्रिय पतिदेव को समर्पित

पृथ्वी भी दिखाती है












जो भीतर है उसके
उसे खोद खोद
बना दी हैं हमने
बाहर अट्टालिकाएं
हम दिखा रहें है 
कि हम क्या क्या
कर सकते है
वो भी दिखाती है
कभी कभी
कि वो भी क्या क्या
कर सकती है
सुनामी ,भूकंप
उसी की लंबी साँसे है
जब आहत हो कर
वही श्वास भरती है
और तुम
भुरभुरा जाते हो
पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी को समर्पित

रूहे निभाया करती है



















रिश्ते जिस्मो के 
कब निभा करते है 
रूहे निभाया करती है


सुनीता धारीवाल 
किसी की अज्ञानता का आंकलन कर उस से झूठ कभी नहीं बोलना चाहिए क्योंकि एक दिन जब भी उसे ज्ञान होगा वह आपका आंकलन कर लेगा
बल्कि ऐसे इंसान के लिए ज्यादा एहितयात के साथ सही और सच्चा संवाद करना चाहिए
--इसे क्या पता चलेगा सोच कर जो लोग दूसरों को ठगने के प्रयोजन में लगे होते है उन्हें सावधान रहना चाहिए --पानी ने पुल के नीचे से गुजरना ही होता है देर सवेर
जो आप पर सौ प्रतिशत विस्वास कर आपके साथ समर्पित भाव से जुड़ा हो तो आपकी जिम्मेदारी उसके विश्वास को और भी गहरा करने के प्रति बनती है और ज्यादा सतर्क रहने की भी 
विश्वास अपने आप में ही जिम्मेदारी की कठोर बेड़ी है यदि कोई समझे समझणीये की मर है ये भी
कोई भी घोटालेबाज या अपराधी बड़े आत्मविश्वास के साथ अपराध या घोटाला तभी करता है जब वह उक्त अपराध से निरपराधी बन निकल जाने का रास्ता सुनिश्चित कर लेता है इसलिए 
चौकन्ना रहें बस नज़र रखें यदि कुछ अप्रत्याशित घटने लगे आस पास तो फ़ौरन चौकसी बरतें
बड़े बड़े फ्रॉड घोटाले इसी साफ़ बच निकलने के उपायों के कारण ही घटित हो जाते है
के नाम है ए चाची इस छोरी का अक इस बेबे का ?
ऐबे -"गादड़ी "
ओ चाची यु भी कोई नाम होया इसा नाम क्यों धरया छोरी का ?
ऐबे यूँ बालक पण मैं घणी ऐ मोटी थी गादड़ बरगी 
अच्छा चाची तैने कदे गादड़ देख्या ?
ना ए बेटी
फेर?
बस न्यू ऐ धरया गया
भई हमारे यहाँ तो आज भी लड़की के माँ बाप का पहला और अंतिम लक्ष्य होता है लड़की का ब्याह करना# पता है आपको सौ गऊ दान करने के बराबर पुण्य लगता है एक लड़की के कन्यादान का # लड़की के माँ बाप को मोक्ष मिल जाता है कन्यादान से #
देखो भई राजा के घर क्या सिपाहियों की कमी होती है इस धन को तो राजा महाराजा भी न रख सके
तेरी मेरी तो बात ही क्या रंक भी भी ब्याही जाती है लड़कियां तो
"ठीक ठीक है भाई ब्याह लियो उसने पढन तो दो और पैरो पर तो खड़ी होने की कोशिश तो करने दो
हो तो जाने दो उसे 25 -26 की "
हाय बेटी न्यू तो आधी उम्र जा लेगी छोरी की रहण दे तो नयी नयी काढ़ लयावै काढ़ क-े पढ़ के हम ने ना पढ़ावै
कोई पुगण आली बात तो मान भी लयां यु के कही बिना सर पैर की
कोई आपका आईडिया या कोई रचना या कलाकृति या डिज़ाइन चुरा सकता है आपका दिमाग आपका अनुभव व् आपका चिंतन नहीं चुरा सकते अगर आपके पास योग्यता है तो बार दोबारा कुछ भी रच सकते है आपको चाहने वालो की कोई कमी नहीं आप जहाँ जायेगे जिस भी मंच का इस्तेमाल करेंगे आप लोकप्रिय हो जायेंगे आपके मूल गुणों के कारण और नक़ल करता तो नक़ल के सहारे हो सकता है एक बार लाभ ले ले पर हमेशा नहीं कर पायेगा
पर यह भी सच है कि कुछ लोगो की ज़िन्दगी और रोटी उमर भर किसी न किसी को नकलाते किसी का काम चुराते निकल भी जाती है ये उसका लिखा होता होगा
स्कूल की घंटी
बजते ही वो
जान जाती है
मास्टरनी के घर
अब जाना है 
झाड़ू बुहारी करने
बुजुर्गो को सँभालने
वही है ये
जिसकी माँ
स्कूल में बुहारी करती है
बच्चों के लिए
और वो बुहारी करती है
माँ के लिए
अभी अभी मुझे मिली घर के बाहर किशोर बच्ची काम पर जाते हुए








तेरे जिक्र में भी हूँ 
तेरे फ़िक्र में भी हूँ 
और मुझे बस चाहिए क्या

सुनीता धारीवाल जांगिड 

share if you liked it
मैं -ताई या रामकरण की छोरी 16 -17 की भी नहीं हुई होगी ईबे मांग भी दई थमनै 
ताई -हाँ बेटी घणी उमर की होयां पाछै रूप कोनी चढ्डा छोरी कै ब्याह मैं पाकी पाकी सी भुंडी लागै सिंगार ज़ेवर कुछ भी न जचता काची काची सी ऐ छोरी लागैं सीता बरगी 
पोस्ट का के ताई का लॉजिक समझण की कोशिश कर रही हूँ 
पता है तुम्हे
शाही लिबास में भी
तुम नंगे हो
मैंने देखा तुम्हे
तुम आंखो से 
अपने कपडे उतार रहे थे
जब तुम
उसे देख रहे थे
जिस पर
बुरका नहीं था
और न कपडे थे
पर वो पूरी ढकी थी
"बुर्के के बिना औरत नंगी होती है !"सोच_है_या_शौच
लुबना की पोस्ट पर लिखा मैंने जवाब उपरोक्त कविता
ओढ़ लिए हैं
बुर्के मैंने
आँखों पर
ढक लिया है
दिल भी
छुपा लिया है
मन मतवाला
घूंघट में
वाह
बढ़ गयी हैं
आसानिया
आह
बढ़ गयी हैं
उदासियाँ
सुनीता धारीवाल जांगिड

लहजे बांचती हूँ मैं
















शब्द नहीं
लहजे बांचती हूँ मैं
संभल कर मिलिएगा

सुनीता धारीवाल जांगिड 
इंद्र ने बैठक ली
अप्सराओं की
कहा श्रृंगार करो
धरती पर चुनाव आने वाले है
आसान नहीं 
सफ़र ऐ सियासत 
मरना होता है 
रोज रोज 
उनके लिए 
जो जीना
चाहते है
और
लोग समझते है
हम उत्सव मना रहे है
यकायक 
मीलों तक ख़ामोशी 
शोर मचाती है 
जब ---------
राहतें 
ही तो बनेगी आफतें
देर आयद दुरुस्त आयद
सियासत में एक अवसर छूटने का अर्थ होता है पांच साल पीछे जाना और लगातार संघर्ष करते रहने वाले के पास अधिकतम 5 या 6 अवसर होते हैं उम्र बढ़ने के साथ अवसरों की गिनती कम होती जाती है
पीढ़िया संघर्ष करती हैं यदि अकेला चलना और साथ में विचारधारा हो
किसी विचारधारा द्वारा उत्पन्न स्थापित संगठन में थोडा बहुत 19 -21 भी खप जाता है पर अकेले स्थापित होने की मंशा में अपरिपक्व आचरण या संवाद नहीं चलता
जब तक पकते है उम्र निकल जाती है 
सियासत में " मैं बेहतर "कहने से बात नहीं बनती आपकी विचारधारा दूरदर्शिता जवाबदेही प्रयोगधर्मिता ,सामजिक व् व्यग्तिगत आचरण सभी की परीक्षा प्रतिदिन होती है
एक बात और शेर पालने के समय गीदड़ नहीं पाले जाते और गीदड़ पालने के समय शेर नहीं यही पहचान करना की आपकी टीम में कौन क्या है और कब दिखाना है महत्वपूर्ण होता है
मेरे अनुभव के पिटारे से निकली यह पोस्ट
सुनीता धारीवाल जांगिड़
सियासत में कोई आपको इसलिए अवसर नहीं देगा कि आप कितने परिश्रमी हो या फिर कितने लॉयल हो या कितने सुपात्र हो काबिल हो सक्षम हो या फिर कितने लूट पिट चुके हो आपको अवसर तभी मिलता है जब अवसर देने वाला यह जान जाता है आप उसकी कुर्सी बनाये रखने में उसको सत्ता में बनाये रखने में कितने काम आते हो -उसकी ज़रूरतो में अगर आप फिट हैं तो हिट है
कहा था न सोचेंगे तुम्हारे बारे में भी 
तो क्या 
अक्सर सोचते हैं हम कि क्यों सोचती हो तुम इतना ?
जीवन साथी अंतिम लक्ष्य नहीं बल्कि आपके छोटे बड़े लक्ष्यों का हमसफ़र होता है विवाह के बाद जीवन खत्म नहीं शुरू होता है 
हमसफ़र को सिर्फ हमसफ़र ही मानो लड़कियो ये मंजिल नहीं की गलत लगी तो जीवन समाप्त कर लिया फांसी लगा ली 
जीवन और भी बहुत कुछ है और हमसफर कोई और भी होगा गर चाहो तो न चाहो तो अकेले भ्रमण का भी अपना ही रोमांच होता है 
आत्महत्या हल नहीं देखो दुनिया इसी जीवन में ही
किसी को अपने इज़्ज़तदार और शरीफ होने का भ्रम है तो वह एक बार सियासत में आजमा ले खुद को -वहम निकल जायेगा 
यह मात्र उपमा है जो हम सबसे ज्यादा खुद के लिए इस्तेमाल करते हैं औरो के लिए इस्तेमाल करने से पहले सोच में पड़ जाते है
संभावित है कि खुशफहमी के चलते आप सियासत में उतरने का साहस नहीं करेंगे 
और खुद की आलोचना जो कभी न सुनी हो उसे भी सहन नहीं कर पाएंगे



















दूरी बना लेती हूँ 
बिगाड़ती कहाँ हूँ मैं


सुनीता धारीवाल जांगिड 
पाँव छूने आये 
शख्स ने 
बाहर निकलते ही 
जैसे कालर चढ़ाये 
कि मेरे पाँव उखड गए
राजनीति में आज लोग सो कॉल्ड कार्यकर्ता भी निवेशक होते है समय और धन का हिसाब रखते है 
जितने भी दानी कह कर साथ लगते है अंततः निवेशकों में परिवर्तित हो जाते है यह ऐसा क्षेत्र है
सम्भावनाये अथाह होती है इसमें - जिसकी कोई क्षेत्र सीमा नहीं ग्राम पंचायत से लेकर देश का राष्ट्रपति बनने की सम्भावना का क्षेत्र है यह और अवसर सिमित होते
संभल तो जाते 
गर टूटने की नीयत से न गिरे होते
हाथ की लकीरें
माथे पे आ जमी है
बस इतना सफ़र किया है
तकदीर ने मेरी
सुनीता धारीवाल
ताप झुलसाता ही है
भीतर हो या बाहर
नमी बनाये रखिये
जितनी संभव हो सके
सुनीता धारीवाल
आस दिखा कर 
ग्रास छीन ले 
यानी सियासत
दुनिया के लिए
घर से निकलो 
फिर दुनिया की सुनो 
कौन भरे बाज़ार 
कपडे उतरवाता है 
हाय मेरे देश
तू क्या क्या करवाता है
तमगों की आड़ में
कहाँ छुपता है
हमारा तुम्हारा सच
सुनीता धारीवाल जांगिड़
कौन खोलेगा किवाड़ 
जब घर लौटूंगी मैं 
चौगाठ बेच कर
नज़र तेज होते ही 
आँखों को पढ़ना 
छोड़ दिया मैंने
कब तक नहीं बुलाओगे
महफ़िलों में अपनी
इक तबका वाह वाही
साथ लिए फिरती हूँ मैं
सुनीता धारीवाल जांगिड़
जिस्मो के बाज़ार में
चीखने पर कौन रुकता है
कौन ठहरता है
सिसकियों के गीत पर
बढ़ जाता है उन्माद 
आवाज तेज होते ही
सुनीता धारीवाल जांगिड़
पैरो पे खड़े हो
शहतीर इक्कठा करो
छत में हिस्सा
पगली आसान नहीं है
सुनीता धारीवाल जांगिड़
सुरक्षा नामक
सभी हथियारों का
खूब पता है मुझे
आजीवन सश्रम
सुरक्षा कारवास में 
मुझे नहीं रहना
सुनीता धारीवाल जांगिड़
मैं खुली हवा की रवानी हूँ 
इस नए चलन में भी पुरानी हूँ
कुछ लिख कर बिकते है
कुछ बिक कर लिखतें है
लिखने वालो का भी
कुछ मोल तो होता है
सुनीता धारीवाल जांगिड़
संभल कर बोलियेगा
लिखना जानती है वो
सुनीता धारीवाल जांगिड़
हाय ओ रब्बा 
तुम्हारी स्पीच लिख दूँ 
ओ सबसे बड़े पंचयाती 
बेगार के खाते से ?
आप क्या जानो कि निवेशक रुपी कार्यकर्त्ता और अर्थ निवेशक कैसा कैसा और कितना दबाव बनाते है की नेता लाभ के स्थान पर बना रहे ?ऐसा नहीं हो पाने की दशा में वे किस किस तरह जलील करते है कोई कितनी जलालत सहे घर भी और बाहर भी -नज़र अवसर पर गड़ाये रखने के सिवाय कोई तरीका नहीं होता सियासत में -या तो सियासत छोड़ दो या समझोता कर लो
जल्दी सब को है क्योंकि अवसर गिनती के हैं
आज अगर नेता स्थिर नहीं तो कार्यकार्यता कहाँ स्थिर है सिर्फ वही स्थिर रहते है जिन्होंने बड़े बड़े लाभ उठा रखे हैं क्योंकि उनका जल्दी से और उतनी ही नज़दीकी किसी और से बन नहीं पाती और वो ही नेता को घेर कर दबाव बनाते है और वही पब्लिक में उसकी दुकानदारी भी जमाते है
सियासत में निवेशक दो तीन पीढ़ी तक का निवेश करते है और साधारण भोले कार्यकता को तो एक दो पीढी के बाद ही लाभ मिलता है
अक्सर दादे अपने पोतो के लिए लाभ मांगते भी दिख जाते है की चौधरी साहब इब तो तीसरी पीढी आ गयी इब तो कुछ करवा दो इतने बदनाम तो हो लिए तेरे नाम पै कि कहीं ओर जान जोगे भी नहीं
पुराणी कहावत -रांड रंडापा जद काटै जद रांडे काटण दे
नेता तो टिक जाएँ जनता टिकने दे तभी न
हर गली से गुजरी हूँ मैं 
जो देश दिखाती है
नेता भावुक हो तो नेता ठगा जाता है जनता भावुक हो तो जनता ठगी जाती है यदि दोनों ही व्यवहारिक और संवेदनशील हों तो क्रांति आती है परिवर्तन आता है ,यहाँ दोनों ही तरफ से अपील जो भी की जाती है वह भावुक ही होती है चाहे जनता नेता से करे या नेता जनता से करे 'भावुक होना इंसानी कमजोरी है और कमजोर नस दबाने से ही क्रिया प्रतिक्रिया होती है 
चाहे कभी कोई नेता रो पड़े कभी अभिनेता रो पड़े या फिर कभी कोई न्यायधीश रो पड़े ये भावना तब प्रबल होती है जब उसे लगता है कि वह असहाय हो गया है या उसके हाथ बंधे है और बाँधने वाले सुन नहीं पा रहे है

असर

किताबे 
अभी नहीं पढ़ती हूँ मैं 
किसी भी की लिखी 
कि कहीं असर न हो जाये 
किसी की लेखनी का
और मौलिकता मेरी
जो अनुभवो का सार
लिख रही है
कही वो हवा न हो जाये
शब्दों के जादू से
भीतर से बहे आते है
वही भाव उतरते जाते है

गुरुवार, 21 अप्रैल 2016

महान

किसी महानुभाव को
महान घोषित करने से
सरल हो जाती है
गर ज़िन्दगी को कर डालिये
सार्वजनिक घोषणा
महानता की
बेहिचक
तुरंत
बहुत कम
कीमत है
आसां जीवन की

अकेली

बहुत कुछ होता है
एक औरत के पास
धन सम्पति के
के  अतरिक्त भी
जिसे लूटने की फ़िराक में
होता है जहान
जब
वह अकेली होती है
तब
पात्र बन विश्वास का
उकेरते है
परत दर परत
उसका सब
तन मन धन
अब
वो खाली भी होती है
अकेली भी

बुधवार, 13 अप्रैल 2016

बैसाखी रूंगा

मैंने वो
सपने बुनती देखी
खेत की रेत में
दाने चुनती देखी
तुम भी देखो
वो हाथ दराती लिए
आजकल खेत में
सूरज से नज़रे मिला रही है
साल भर के दाने कर लूँ
सखियों से बतला रही है
बाँध दिए है
कितने ही पूले
काट काट कर
ज़मीदार के लिए
और उसकी
निगाहें खेत में
गिरे हर दाने की ओर
जाती है बार बार
जिसे उसने चुन लेना है
सुबह मुह अँधेरे
हाथो में उसके
चीरे है
पर उन चीरो से
नहीं बदलती
उसकी हथेली की रेखाएं
उसे कहाँ चिंता है
किसी सनस्क्रीन की
उसका तो आज कल
वही दिन बैसाखी होती है
जिस दिन
बहुत से दाने
गिरा देती है
कंबाइन उसके लिए
बड़े बड़े खेतो में
यहाँ भी बचा खुचा दाना
उसे खुशी देता है
रुंगा मिल जाने की तरह
और मिल जाता है
यही रूंगा
मंडियों में भी
झारने से बचे फूस
के बीच
जिसे वह टटोल लेती है
हर रोज
और हर साँझ वो
इसी फूस में से रूंगा
घर ले जाती है
और सपने बुनती जाती है

सुनीता धारीवाल

रविवार, 10 अप्रैल 2016

कंपन

कितना कंपन होगा मेरे जेहन में
जो धरती का कंपन सुना ही नहीं

लौटना होगा

लौटना ही होगा
जिंदगी की ओर
अगली भोर
तेरी ओर
लौटना ही होगा
कलम की ओर
अगला शोर
कागज की ओर
लौटना ही होगा
अब घर की ओर
चुग कर दाना
परदेस को छोड़
लौटना ही होगा
जड़ो की ओर
चाहे हैं खुरदरी
पर होती वही है
कोमल फूलों का
सुन्दर पत्तो का
टहनियों का आधार

मौन

मौन में भी क्यूँ मौन नहीं हूँ
कौन हूँ मैं कौन नहीं हूँ
तुम से यूँ 
जाया न जायेगा
जानती थी मैं 
तुम्हारे आने से
पहले ही

क्रोध मेरा

बेकाबू मेरा सिर 
क्रोध से आलिंगन कर बैठा है 
कर्कश शव्द बाण की ओढ़ चुनरी
शांति को ललकार कर बैठा है 
बरस रही हूँ तेजाब की बारिश की तरह 
बस दूर रहो इस रूप के आदि नहीं
तुम सारे मेरे प्यारे दूर रहो
अकेलापन
भरने कहाँ देते हैं 
अन्तस् में कुंडली 
जमाये अनुभव

रोके है पाँव

चल तो दूँ 
उन्ही रास्तों पर
उसी सड़क पर 
जो जाती तो है
पहुँचती कहीं नही हैं 
पर ------

ख्याल ऐ दुनियादारी 
रोके  है  पाँव 

वो छाँव बाँध कर निकल गए

दुर्गम राहें तो आसां थी
हम राह सुगम पर फिसल गये
था शौक बहुत गम खाने का
अपने अरमान भी निगल गए
जो हाथ पकड़ कर सीखे थे
वो कबके हमसे आगे निकल गये
हम रहे रोकते धूप मियां
वो छाँव बाँध कर निकल गए

मुझे मन मर्जी दे

वो कहाँ कब मेरी ओर झुका
मैं लिखा समझ कर झुकी रही
इतना अनजान कहाँ है तू
यह मान के मैं तो छुपी रही
जा कर ले जो तूने करना है
इस जन्म का यहीं भरना है
तू दाता है जो मर्जी दे
बस थोड़ी सी खुदगर्जी दे
कुछ कागज़ मेरे फिर से लिख दे
न फेर नज़र ये अर्जी ले
कुछ तो रहता है थोडा ही सही
आखिरी बार मुझे मन मर्जी दे
सुनीता धारीवाल

शक्ति

शक्ति हूँ मैं 
अवतरित होती हूँ 
जब बन आती है 
मेरी अस्मिता पर 
और तब 
पूजने लगते हो तुम

दोहराना चाहूँ मैं

कोई तो ऐसा लम्हा हो
जिसको दोहराना चाहूँ मैं
कोई रूठे तो सच में मुझसे
जिसको मनाना चाहूँ मैं
हूँ राम रची में मैं राजी
पाया सब अपनाना चाहूँ मैं