मंगलवार, 24 मई 2016

बैराग भला

बैराग कितना भाने लगा है भीतर ही भीतर घर बना लिया है उसने और कमंडल व् झोला रोज़ खोलता है वो जब भी मैं अकेली होती हूँ और उसकी बात मान जाती हूँ और चल देती हूँ उसके साथ राग द्वेष मोह माया के बंधनो से परे और छोड़ देती हूँ खुद को उस असीमित रौशनी से लिपटने के लिए जहाँ सिर्फ और सिर्फ एक प्रकाश है और मैं भी बस प्रकाश बन जाती हूँ एकदम हलकी और चमकदार और फ़ैल जाती हूँ सारे ब्रह्माण्ड में खटखटाने लगती हूँ उन सब के किवाड़ जो जागते हुए भी सोये है और घिरे हुए है अँधियारो में
मेरा यही मन भावन पर्यटन है आज कल मन एकाग्र कर ध्यान लगाओ और दुनिया और ब्रह्माण्ड घूमो
अमेज़न फ्लिपकार्ट कहीं भी नहीं मिलता इसका टिकेट
ढूँढने से मिल जाएगा आपके भीतर ही बस ध्यान लगाओ
चलो चलो कोशिश करो ये अनुभव हर हाल में स्थिर रखता है ख़ुशी देता है

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