आज सुबह सुबह अखबार में खबर पढ़ी पूर्व में कांग्रेस नेता वर्तमान ने बी जे पी नेता और आजकल के पिछड़ा वर्ग के मूर्धन्य नेता श्रीमान भाई रोशन लाल आर्य को पुलिस ने जयपुर से गिरफ्तार दिया (पुलिस को उन्हें हरियाणा में जातिय दंगा भड़काऊ भाषण दे कर जनता में कटुता फ़ैलाने के मामले में तलाश थी पर हाई कोर्ट ने उन्हें राहत दे दी थी ) गिरफ्तारी का कारण clu दिलवाने के नाम पर ठगी को अंजाम देना बताया गया -दिल्ली के सेठ जी विशाल अग्रवाल ने आरोप लगाया की रोशन लाल ने उनसे 30 लाख रुपये ले लिए न तो clu करवाया न ही उनके पैसे लौटाए ,(इस पोस्ट से मुझे उनके सही या गलत होना साबित करना कतई नहीं है बस clu के मामले में अपना थोड़ी सी जानकारी साँझा करनी है )
तो जनाब खबर पढ़ते ही मुझे एक दिन का वाकया याद आया मैं पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के पास बैठी थी तो एक थोड़े कम कद के पर मध्यम सी आयु वर्ग के नेता अपने काम की रिपोर्ट देने आये उनके जाने के बाद मैंने अपने उक्त वरिष्ठ नेता जी से पूछा सर इनको पार्टी टिकट मिलने की संभावना मुझे दूर दूर तक नज़र नहीं आती फिर क्यूँ इनका इतना खर्चा करवाया जा रहा है पार्टी की रैली रख दी केंद्रीय नेताओ के आवभगत इतियादी में भी इनसे काम लिया जाता है अगर पार्टी ने टिकट नहीं दी तो -नेता जी ने मुझे समझाया कि देखो टिकट और सीटें तो सीमित होती है यदि न चुने गए तो सरकार में और बड़े उपाय होते हैं कहीं चेयरमैन बना दिये जायेंगे या कोई मोटा काम करवा लेंगे .और खर्चे पूरे कर लेंगे पार्टी थोड़े न कुछ देती है पार्टी को तो देना पड़ता है .बाकी तो समझ में आया पर ये मोटा काम तब समझ में नहीं आया था और शिष्टाचार वश मैंने खुल कर पूछा नहीं कि सर ये मोटा काम क्या होता है .चलो बात आई गयी हो गयी .सरकार आ गयी मुख्यमंत्री भी बन गए तो पता चलने लगा की सरकार के मोटे कामों पर एक अधिकारी और एक पूंजीपति कुंडली मार कर बैठ गए हैं मैं फिर भी न समझी - जब भी कोई मोटा काम होने की खबर दौड़ती जो मुख्य मंत्री नहीं बन पाए छटपटा जाते और विरोध का स्वर बढ़ा देते -मोटे काम का होना असहनीय होता जा रहे थे जिस से अनुभव था ताकत का और मोटे काम और मोटी कमाई का उनके पसीने छूट रहे थे .फिर जो हुआ वह सभी जानते हैं
"जब जहाज की न रही कोई औकात तो हम चूहों की क्या बिसात "
कुछ समय बाद एक दिन एक ऑनलाइन अखबार ने खबर छपी हरियाणा में एक एकड़ clu का रेट २ करोड़ रुपये मुख्यमंत्री ने जारी किये 50 -55 clu -पढ़ते ही मुझे मोटे काम की परिभाषा समझ में आने लगी फिर तो सैंकड़ो मोटे काम तो मुझे मंडी के व्यापारियों ने भी गिनवा दिए -एक बारगी तो यकीन नहीं हुआ चलो खैर समाज में क्या क्या होता है सीखना समझना तो होता है जिज्ञासा वश ,
(कृपया मुझ से उस अंग्रेजी ऑनलाइन अखबार का लिंक न मांगे तब मुझे लिंक या कोई पोस्ट सेव करनी नहीं आती थी -बस पढ़ लेती थी )
तब समझ में आ गया था की सियासत में खर्चे कैसे पूरे हो जाते हैं और मुख्यमंत्री को पार्टी के बड़े मगरमच्छो द्वारा कैसे नोचा जाता है बड़ी टेढ़ी खीर लगी ये कुर्सी न हो तो गए हो तो गए ,धन्य हैं वे जो इतने दबाव में भी काम कर लेते हैं -अब आप ही सोचो अगर कोई मुख्यमंत्री उक्त नेता के कहने पर clu न दे तो वो तो कहीं के न रहेंगे न घर के न घाट के -सियासत के कर्जे कौन कैसे उतारे -न देश में कोई लोन मिलता है न ही संघर्ष करने वालो को कोई निवेशक मिलता है -ज्ञात रहे कुछ धनपति भी निवेश करते हैं कोई चैरिटी नहीं करेगा -उनकी भी अपनी अर्थ नियमावली है किस को कितना कब देना है या नहीं देना उन्हें हम सब से ज्यादा समझ है -ये तो भोले भाले लोग है जो संघर्ष करने वालो को भी सिक्को से तोल देते हैं ऐसे में क्या एक clu भी न मांगे
इस लेख को व्यंग्य में ही ले ले तो ही ठीक है -लेख की सत्यता स्थापित करने की मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है - ये विचार मेरे निजी है कल्पना भी हो सकते हैं (विवाद से बचने का यही तरीका है )
तो जनाब खबर पढ़ते ही मुझे एक दिन का वाकया याद आया मैं पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के पास बैठी थी तो एक थोड़े कम कद के पर मध्यम सी आयु वर्ग के नेता अपने काम की रिपोर्ट देने आये उनके जाने के बाद मैंने अपने उक्त वरिष्ठ नेता जी से पूछा सर इनको पार्टी टिकट मिलने की संभावना मुझे दूर दूर तक नज़र नहीं आती फिर क्यूँ इनका इतना खर्चा करवाया जा रहा है पार्टी की रैली रख दी केंद्रीय नेताओ के आवभगत इतियादी में भी इनसे काम लिया जाता है अगर पार्टी ने टिकट नहीं दी तो -नेता जी ने मुझे समझाया कि देखो टिकट और सीटें तो सीमित होती है यदि न चुने गए तो सरकार में और बड़े उपाय होते हैं कहीं चेयरमैन बना दिये जायेंगे या कोई मोटा काम करवा लेंगे .और खर्चे पूरे कर लेंगे पार्टी थोड़े न कुछ देती है पार्टी को तो देना पड़ता है .बाकी तो समझ में आया पर ये मोटा काम तब समझ में नहीं आया था और शिष्टाचार वश मैंने खुल कर पूछा नहीं कि सर ये मोटा काम क्या होता है .चलो बात आई गयी हो गयी .सरकार आ गयी मुख्यमंत्री भी बन गए तो पता चलने लगा की सरकार के मोटे कामों पर एक अधिकारी और एक पूंजीपति कुंडली मार कर बैठ गए हैं मैं फिर भी न समझी - जब भी कोई मोटा काम होने की खबर दौड़ती जो मुख्य मंत्री नहीं बन पाए छटपटा जाते और विरोध का स्वर बढ़ा देते -मोटे काम का होना असहनीय होता जा रहे थे जिस से अनुभव था ताकत का और मोटे काम और मोटी कमाई का उनके पसीने छूट रहे थे .फिर जो हुआ वह सभी जानते हैं
"जब जहाज की न रही कोई औकात तो हम चूहों की क्या बिसात "
कुछ समय बाद एक दिन एक ऑनलाइन अखबार ने खबर छपी हरियाणा में एक एकड़ clu का रेट २ करोड़ रुपये मुख्यमंत्री ने जारी किये 50 -55 clu -पढ़ते ही मुझे मोटे काम की परिभाषा समझ में आने लगी फिर तो सैंकड़ो मोटे काम तो मुझे मंडी के व्यापारियों ने भी गिनवा दिए -एक बारगी तो यकीन नहीं हुआ चलो खैर समाज में क्या क्या होता है सीखना समझना तो होता है जिज्ञासा वश ,
(कृपया मुझ से उस अंग्रेजी ऑनलाइन अखबार का लिंक न मांगे तब मुझे लिंक या कोई पोस्ट सेव करनी नहीं आती थी -बस पढ़ लेती थी )
तब समझ में आ गया था की सियासत में खर्चे कैसे पूरे हो जाते हैं और मुख्यमंत्री को पार्टी के बड़े मगरमच्छो द्वारा कैसे नोचा जाता है बड़ी टेढ़ी खीर लगी ये कुर्सी न हो तो गए हो तो गए ,धन्य हैं वे जो इतने दबाव में भी काम कर लेते हैं -अब आप ही सोचो अगर कोई मुख्यमंत्री उक्त नेता के कहने पर clu न दे तो वो तो कहीं के न रहेंगे न घर के न घाट के -सियासत के कर्जे कौन कैसे उतारे -न देश में कोई लोन मिलता है न ही संघर्ष करने वालो को कोई निवेशक मिलता है -ज्ञात रहे कुछ धनपति भी निवेश करते हैं कोई चैरिटी नहीं करेगा -उनकी भी अपनी अर्थ नियमावली है किस को कितना कब देना है या नहीं देना उन्हें हम सब से ज्यादा समझ है -ये तो भोले भाले लोग है जो संघर्ष करने वालो को भी सिक्को से तोल देते हैं ऐसे में क्या एक clu भी न मांगे
इस लेख को व्यंग्य में ही ले ले तो ही ठीक है -लेख की सत्यता स्थापित करने की मेरी कोई जिम्मेदारी नहीं है - ये विचार मेरे निजी है कल्पना भी हो सकते हैं (विवाद से बचने का यही तरीका है )
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