शुक्रवार, 27 मई 2016

मैं क्यूँ करूँ संजीदा बातें
















क्यूँ भई
मैं क्यूँ करूँ
देश दुनिया की
सब संजीदा बातें
पता है इनसे दिल दिमाग पर
टनों बोझ पड़ जाता है
मुस्कुराया भी नहीं जाता
क्यूँ न मैं
ऐसे मुद्दों में अपने
अपने दिमाग की टांग   (काबिले गौर है -दिमाग की भी टांग होती है जो कहीं भी फंस जाती है )
कुछ दिन दूर ही रखूं
और खुश रह हूँ
सबसे प्रेम कर के
सबको गले लगा के
किसी के लिए बजा के
किसी के लिए थाली बजा के
किसी को सुन लूँ
किसी को कह लूँ
मुझे अभी नहीं बैठना है
चिंता से सताए
चिता सी सजाये
बुद्धिजीवी लोगो के बीच
लद कर नहीं उठना मुझे
बस जीना है
मुस्कुराते हुए
उन के साथ भी रहना है
हँसना मुस्कुराना है
जो पिट चुके जोक सुनते है
कभी खुद पिट कर भी आते हैं
फिर भी लोटपोट हुए जाते है
सारे बेचारे आम आदमी
बेचारा कर देते है
उन्हें भी जो उनकी बेचारगी पर
टनों कागज़ लिखे बैठे हैं
मुझे उन्ही में रहना हैं
सुनीता धारीवाल जांगिड

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