मंगलवार, 24 मई 2016

आज़ाद सी वह

उसे देख बहुत खुश  हूँ
वो कैसी आज़ाद सी चहकती है
जब से उसने उसने ठोकरों को ठुकराया है
शायद एक मित्र नया बनाया है
मैंने देखा उसे बाहें  फैला
चूनर को हवा में लहराते हुए
जंग लड़ी थी उसने
अपने श्याम वर्ण की अस्वीकार्यता
घरेलु हिंसा और हिकारत से
सारा दर्द  उकेरा उसने
रंगों के कैनवास पर
काले रंग के शब्दों से
पन्ने भर किताबें कही
 आत्म सम्मान
नयी पहचान
सब कुछ हासिल
मैंने देख लिया था
  बेसुधी ठोकर लिए
उसके काँधे पर चढ़ी थी
नियति यह कि
 आजकल वह चढ़े  रंग
 उतारने में लगी है
फिर से खुद की खोज में
नयी परिभाषा संग आएगी वो
शीघ्र ही एक बार फिर
नए मंच पर नए कलाम के साथ
और मैं उसके इंतजार में हूँ
कि वो  आये  और एक बार फिर  से  कहे
दीदी ज़िन्दगी जीने के लिए है
बिताने के लिए नहीं


सुनीता  धारीवाल 

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