मंगलवार, 24 मई 2016

कूल्हे मटकाना कौन सा बुरा है

 अभिनेता @ऋषि कपूर # सम्पत्तियों  पर गान्धी परिवार का नाम ही क्यों? महाशय देश पर क़ुर्बानी देने वालों के नाम नहीं तो क्या कुल्हे मटकाने वालों के हों?
इस ट्विटर पोस्ट पर एक  राजनेता मित्र ने इस प्रकार जवाबी टिपण्णी  कर दी -देश पर मिटने वालो को नहीं तो क्या कूल्हे मटकाने वालो का नाम लिखा जाए -इस पर मैं बिना दखल दिए रह न पाई इसलिए उन्हें लिख दिया
प्रिय बड़े भाई
इंसान जब बेहद खुश होता है तब वह मुस्कुराता है हँसता है खिलखिलाता है जब हर्ष या ख़ुशी बेकाबू होती है तो मानव के देह में तरंग के रूप में प्रविष्ठ हो जाती है और इंसान की देह तरंग से अभिभूत क्रिया करती है और देह में हलचल होती है चूँकि इंसान की देह में कूल्हे लचीले जोड़ो से सुसज्जित है जिस से कूल्हे ही अत्यधिक ख़ुशी में लचीली हरकत करते है यानि मटकते है और देह का हर भाग व् अंग उपांग सब थिरकते है पर कूल्हे सबसे अधिक दृश्यता लिए होते है नाचना तो खुशी की अभिव्यक्ति की पराकाष्ठा है यही पराकाष्टा की क्षणों को मोक्ष परिभाषित किया जाता है असीमित आनंद
कूल्हे मटकाना कोई पाप नहीं न ही कोई हीन कर्म है न ही इन कूल्हे बेचारो को नीच संज्ञा दी जा सकती है
जहाँ तक कूल्हे मटकाने का सवाल है तो हर इंसान मटकाता ही है गाहे बगाहे या फिर कभी कभार अब देखो इंदिरा जी को देखिये वो भी कहाँ रोक पायी खुद को कितनी बार लोक कलाकारों के साथ वे भी नाचने  से खुद को नहीं रोक पायी बल्कि इस तरह नाचना उनकी लोकप्रियता को बढ़ा ही देता था हर बार ऐसे ही कितनी बार सोनिया जी भी लोक रंगो में रंगी दिखी और उनकी आँखों में ख़ुशी की चमक तो मैंने भी देखी है सभी नेताओ ने कभी न कभी हर्ष को बताया है
हां ये बात गौर करने लायक है कि बिना आंतरिक हर्ष के रोटी के लिए या वोट के लिए कूल्हे मटकाना तो करतब ही कहलायेगा और उनका वह सम्मान न होगा
और हाँ याद आया सो called कूल्हे मटकाने वालो की जीत पर सबसे ज्यादा भरोसा कांग्रेस ही करती आई है कभी देश का नेतृत्व करेंगे और इतिहास भी रच सकते है ये रचनात्मक जो ठहरे
पभु प्रेम में हर कोई नाचे कृष्ण भी स्त्री वेश धर नाचे देश प्रेम में मैं भी नाच लूंगी

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