शुक्रवार, 27 मई 2016

फाल्गुनी उमंग है














रंग हैं   पतंग हैं
लहू में तरंग है
फाल्गुनी बहारो की
हवाओ में उमंग है
मस्त हुआ फिरता है  भंवरा
 कालियां  भी हुई दबंग हैं
रंगोली सी धरती है
उपर वाला भी दंग है
खुद से  प्यार हुआ जाता है पगले
यह फाल्गुन की उमंग है
मदमाती चाल
 बिना ढाल
यही फाल्गुनी ढंग है

सुनीता धारीवाल




कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें