अक्सर हम उपहार Gift लेने वाले की हैसियत को ध्यान में रख कर चुनते है न की अपनी -(इनके यहाँ तो यह भी चल जायेगा कह कर गिफ्ट भी चला रहे होते है ) मुझे याद है हरियाणा के वरिष्ठ अधिकारी की पत्नी ने लोकल गिफ्ट शॉप वाले से यूँ सेटिंग कर रखी थी जो भी गिफ्ट उनके यहाँ आये वह मैडम उन्हें आधे दाम पर उसी दूकान पर बेच देती थी या फिर अपनी ज़रूरत का कोई और सामान ले लेती थी ,देखो भइ घर छोटा होता है ज़रूरी नहीं कि सब सामान सजाऊ जो भी आये इस से सौदा करना बेहतर है -और साहब को आये दिन कुछ न कुछ गिफ्ट तो मिलते ही रहते है -और एक मंत्री जी की पत्नी तो कार की डिक्की का हर हिसाब आते ही ले लेती है क्या मज़ाल की एक फूलमाला भी बाहर छूट जाये ,यही आदेश है उनका की मंत्री जी के आते ही सब कुछ भीतर लाया जाये बिना कान्ट छांट ,
अब आप ये भी जानना चाहते होंगे कि मैं उपहारों का क्या करती हूँ ?तो जनाब मैं बहुत ब्लेस्ड वीमेन हूँ जिसे जिंदगी में अनेकानेक सममान व् उपहार मिलते रहे है और आज भी मिलते हैं ढेरो शाल मोमेंटो फूल गुलदस्ते अन्य गिफ्ट -मैं इन्हें बहुत प्यार से ग्रहण करती हूँ फिर उन उपहारों को उन लोगो को देती हूँ जिनकी उन्हें भौतिक ज़रूरत होती है कितनी ही औरतों को मैंने अपनी शाल भेंट की है मेरी माँ से लेकर मुझे प्यार करने वाली मेरा सम्मान करने वाली गाव की बुजुर्ग दादियों तक ,गरीब लड़कियों की शादी में दे देती हूँ गिफ्ट्स बर्तन चादर इतियादी के सामान ,खाने का सामान जो मेरी ज़रूरत से ज्यादा हो तो मेरे घर के सामने धोबन को और यदि बिस्कुट नमकीन जैसा बड़े बड़े पैकेट हो तो अनाथ आश्रम में बच्चों को दे आती हूँ जो धन मिलता है माला इतियादी वो पुनः खर्च हो जाता है डीज़ल पेट्रोल में जाने आने में -किताबे हो तो खुद रख लेती हूँ पढ़ती हूँ और स्कूल को दान करती हूँ
और हाँ मोमेंटो बहुत मिलते है घर के इंटीरियर डिज़ाइन में इनकी जगह नहीं है सो अपने दफ्तर में रख लेती हूँ चूँकि ये बहुत ज्यादा होते है तो मैं इन्हें भी अपने सहयोगी कार्यकर्ताओ को बाँट देती हूँ की ये लो सम्मान जो मुझे आप सब के सहयोग से मिला है और वास्तव में उन्हों के कारण बहुत कुछ मिला है यकीन मानो वो मोमेंटो उन के घरो में इतना बखूबी सजता और संभालता है दोहरी वैल्यू के साथ कि यह बहन जी को मिला इनाम है जो बहिन जी ने सिर्फ मुझे ही रखने को दिया है उनकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहता
",तुम क्या समझोगे एक इनाम की कीमत "बरसो लगते है संघर्ष में पिसते हुए "
हाँ याद आया मेरे पास लगभग 27 साल पहले भी बहुत इनाम इक्कठे हुए थे सजा लेने के बाद भी बोरियों में भरे रखे थे और एक दिन मैंने गुस्से में चार बोरियां भर इनाम जला दिए थे जब मुझे लगा की इनकी कोई कीमत नहीं रोटी दिलाने में दो रोटी खाने में तब उम्र कहाँ पकी थी जो रोटी पकती
"देर से समझ आ रहा था की रोटी के लिए लोग इनाम नहीं इमान मांगते है "
यही तो मार खा गया इण्डिया
(वैसे मुझे पेट भरने की कोई दिक्कत नहीं हुई कभी उदार पति बहिन भाई पिता परिवार के चलते बल्कि पकवान ही सुलभ रहे पर मैं अपनी कमाई रोटी का स्वाद चखना चाहती थी जो आज तक नसीब नहीं हुई "
और हाँ याद आया एक नए नवेले नेता ने मुझ से पुछा था की बड्डम बडे नेता को क्या भेंट दूँ
मैंने कहा "सोना ,हीरे या प्लाट या नॉट बाकी सब ये नहीं रखेंगे न इन्हें याद रहेगा "सच्ची मुची भाई ने अपने किल्ले बेच कर परिवार के हर सदस्य के लिए सोने और हीरे के आइटम दिए और भाई आज उनका खासम ख़ास है जी "
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
मंगलवार, 24 मई 2016
उपहार का शिष्टाचार
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