मूसाफिर हम भी
मुसाफिर तुम भी
कांटो पर तुम भी
कांटो पर हम भी
चौराहे कभी सीधे न कहीं
मुड़ चले तुम भी
मुड़ गए हम भी
लिखा है जो
होता है वही
न तेरा कुछ सही
न मेरा कुछ सही
होनी को होना
होता है यहीं
दोष तेरा भी नहीं
मेरा भी नहीं
नियति ही बली
,बलवान भई
न कहना है कहीं
न सुनना है कहीं
बातें लाख करे
जोरों से कहीं
हैं बात वही
जो बिन कहे कही
न तुमने कही
न मैंने कही
होता है वही
होगा जो सही
मुसाफिर कभी
रुकता है कहीं
जहाँ सांस खत्म
सफर खत्म वहीँ
न तू रुके कहीं
न मैं रुकूँ कहीं ।
किसी और मोड़ पर
मिलेंगे कहीं
तब हंस कर फिर भी
कर लेंगे
आपबीती न सही
जगबीती सही
होता है वही
जो होता है सही
जोगी न रुके
पानी भी रुके
मुसाफिर का भी
रुकना ठीक नहीं
न कभी मौत रुकी
न मात रुकी
न ममता की उथली झाल रुकी
हम तुम कैसे रुक जायेंगे
नई राह बुलाती
हैं रोज कहीं
राहें ही तो है ।
जो तय करनी है
कहीं पगडण्डी कहीं
कहीं सड़क नई
रुक जाना तेरा धर्म नहीं
कर्मो से फिर राहें बना नई
सुनीता धारीवाल
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
शनिवार, 24 दिसंबर 2016
मुसाफिर हो तुम रुकना न कहीं
रविवार, 4 दिसंबर 2016
अंकित धारीवाल मेमोरियल ट्रस्ट (पंजीकृत )
मंगला परियोजना
-इस परियोजना के अंतर्गत गत वर्षो में हरियाणा के तीन जिलो में क्रमश कैथल कुरुक्षेत्र व् पंचकूला में 12 हजार किशोरी बालिकाओं को स्वास्थ्य व व्यक्तिगत विकास का प्रशिक्षण दिया गया और इस दौरान उनकी व्यक्तिगत और सामजिक जिज्ञासा का निकारण किया गया .परामर्श उपलब्ध करवया गया और जिसे चिकित्सा की ज़रूरत थी उन बालिकाओं की मदद की गयी ,
महिलाओं में साहित्य व् लेखन की प्रतिभा को मंच देने हेतु और उनकी रुचि लेखन में जागृत करने हेतु अब तक प्रत्येक माह कविता गोष्ठीयों एवम मंचीय प्रस्तुतियों का आयोजन किया है इस मंच से हरियाणा के 6 जिलो की महिलाएं सक्रिय रूप से जुडी है और हमारा कारवां दिन प्रति दिन बढ़ रहा है
वीमेन टीवी इंडिया नेटवर्क
www.wtvindia.in
यह प्रयास है भारत की महिलाओं को एक संवाद माध्यम से जोड़ने का उनकी कही अनकही कहानियों को मुद्दों को सांझा करने का ,उनके हुनर को मंच देने का .उनकी तकनीकी क्षमता को बढाने का .उन्हें अपनी बात कहने के अवसर देने का .इस परियोजना से भारत भर से ३००० महिलाएं सक्रियता से जुडी है और इस परियोजना से प्रभावित है
सरोकार
अब तक सरोकार कार्यक्रम श्रृंखला में राष्ट्र के ज्वलंत सामजिक मुद्दों पर परिचर्चाएं आयोजित की गयी और व तीन संस्थाओं को सम्मानित किया गया इन परिचर्चाओं में सैंकड़ो लोगो ने अपनी उपस्तिथि दिखाई है और इस परियोजना में ज़रूरत मंद बच्चो को हर साल स्कूल की किताबे वर्दियां व् कुछ बच्चो की फीस अदा की जाती है ,अब तक हम २०० बच्चो तक पहुंचे है और उन्हें समय समय पर ज्ञान व् ज्ञान अर्जित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है
संस्था द्वारा पिछले दो वर्षों से लगतार प्रयास किये जा रहे हैं जोकि आप सब आशीर्वाद एवं सहयोग के बिना संभव नहीं है
सुनीता धारीवाल
.
wow womania show audition 3
आज दिनांक 3 दिसंबर को पंचकुला में वीमेन टीवी इंडिया वीडियो पोर्टल की महिला टीम द्वारा wow womania गायन के शो के तीसरा ओपन ऑडिशन किया गया जिसमे 28 महिलाओं से भाग लिया और गीत गा कर सुनाये ।शो के म्यूजिक अरेंजर डॉ अरुण कान्त शर्मा ने चयनकर्ता की भूमिका निभायी और सभी गायिकाओं की गायन प्रतिभा का विश्लेषण किया ।
इस कार्यक्रम में जागृति सूद,मंझली सहारन ,धीरजा शर्मा,नीलम त्रिखा ,सुनीता गर्ग ,सुनीता नैन,सूचीत्रा ,हिमानी जांगडा ,गायत्री ,अनीता जांगडा ,शारदा मित्तल,नितिका अग्रवाल,निशु सहगल ,पवित्रा राणावत ,कंचन भल्ला कविता शर्मा,
शेहला जावेद ,सुमन गुग्लानी,पुनिता बावा को गायन के लिए चुना गया
इस शो की परिकल्पना श्रीमती सुनीता धारीवाल ने की है जिन्होंने बताया की यह शो भारतीय गायिकाओं के प्रति भावभीनी कृतज्ञता प्रकट करके उनके योगदान को स्मरण करने के लिए रचा जा रहा है ।भारतीय हिंदी फ़िल्म उद्योग में महिलाओं का किस प्रकार से पर्दारपण हुआ वे किन परिस्थितियों में फिल्मो में गाने लगी और किस प्रकार 1930 से आज तक महिला गायिकाओं का सफर जारी रहा ।प्रथम बोलती फ़िल्म आलमआरा से शुरू हुए गायन के सफर से लेकर आज तक का सफर इस शो में म्यूजिकल डॉक्युमेंट्री और लाइव महिला गायन का संगम के रूप में प्रदर्शित किया जायेगा ।
जिसमे प्रत्येक दशक को दर्शाने के लिए अलग अलग महिलाओं की टीमें भाग लगीं ,चंडीगढ़ ट्राई सिटी की महिलाओं में इस शो के प्रति बेहद उत्साह देखा जा रहा है अब तक 65 महिलाएं तीन ऑडिशन में आ चुकी है जिनमे से 30 को सेलेक्ट कर लिया गया है ।आज के ऑडिशन में मोहाली से आई सुनीता गर्ग ने कहा कि वे गायन के अपने जुनून को रोक रही थी पर अब उन्हें अपने जैसी महिलाओं की टीम मिल गयी है इसलिए वे अब अपनी हसरत पूरी करेंगी ।
इस कार्यक्रम में भाग ले रही 65 वर्षीय कंचन जैन ने कहा कि गाने के लिए वे बेहद उत्साहित हैं और वो नूरजहाँ सुरैया केे गीत तैयार कर रही हैं ।
युवा गायिका हिमानी ने कहा सभी आयु वर्ग की महिलाओं के साथ गाना एक शानदार अनुभव है हम इन सब में अपना भविष्य ढूंढ सकते हैं
पेशे से स्कूल टीचर संझना ने कहा कि मैं सिर्फ घर में ही गाती रहती थी और अब मंच पर गाने के लिए उत्साहित हूँ
नीलम ने कहा कि मैं गृहिणी हूँ मैंने कॉलेज में गाया और अब जब मेरे सामने अवसर आया अभी दबाई हुए शौक को बाहर निकलने का तो यह मंच मुझे भा गया और मैं इस टीम में शामिल हो गयो
इस शो का प्रैक्टिस का फाइनल राउंड 18 दिसंबर को होगा और उसके बाद मंचीय प्रस्तुति के लिए रिहर्सल होगी ।21 जनवरी को चंडीगढ़ के टैगोर थियेयर में इस शो का मंचन किया जायेगा
वीमेन टीवी की निदेशक शालिनी शर्मा ने बताया की वीमेन टीवी का मंच महिलाओं की प्रतिभा को सामने लाने के लिए अवसर प्रदान करता है जिसमे लेखन गायन ,नृत्य रंगमंच ,तथा अन्य सभी कलात्मक विधाओ जैसे पेंटिंग फोटोग्राफी वीडियोग्राफी ,वृतचित्र इतियादी सभी में महिलाओं को अवसर देगा ।प्रशिक्षण के साथ साथ उन्हें पहचान दिलाने के लिए भी कृत संकल्प है
समय समय पर ऐसे इवेंट्स किये जा रहे हैं जिसे व्यापक जन समर्थन मिल रहा है
गुरुवार, 1 दिसंबर 2016
सोमवार, 28 नवंबर 2016
wow womania show का सफल हुआ ऑडिशन
आज panchkula के सेक्टर 4 में सुनीता धारीवाल जी के निवास पर wtv india की तरफ से आगामी होने वाले मयुजिक प्रोग्राम के लिए ऑडिशन किये गये जिस मे न केवल tricity की महिलाओ ने उत्साह से भाग लिया वरन् कुरूक्षेत्र और दिल्ली से भी महिलाएं भाग लेने आयीं और पुराने गानों के सुर लगा समां बांध दिया. कंचन जैन जी जो मनीमाजरा से प्रतिभागी थी ने अपनी सुरीली आवाज़ में, “ अफसानां लिख रही हूँ सुना कर कार्यक्रम का आगाज़ किया. नीतू जी ने “ मुझको हुई न खबर चोरी – चोरी छुप छुप कर , कब प्यार की पहली नजर दिल ले गई ले गई “ सुनाया. चण्डीगढ से आई संजना भटनागर ने भी एक पुराना मगर बहुत यादगार गीत सुना महफिल मे चार चाँद लगा दिए,” सांझ ढले, गगन तले, हम कितने एकांकी”. एक युवा गायिका ने अपने पक्के सुरो से ये एहसास करवाया कि बच्चे किसी से कम नही और बहुत बुलंद आवाज में ये गाना गा कर सब की वाहवाही बटोरी,” मौह से नैना, कागां सब तन खाईयो जी, मेरा चुन चुन खाईयो मांस, ये दो नैना मत खाईयो ,इन में साई मिलन की आस”. नीना भाटिया जी ने जहाँ, “ चुरा लिया है तुमनेजो दिल को नजर नही चुराना सनम गाया वहीं कुरूक्षेत्र से आई प्रतिभागी ज्योति ने और दिल्ली से आई मोनिका जो कि पेशे से एक वकील है ने भी अपने आवाज से समां बांध दिया. मंजली ने अपनी सुरम्य आवाज़ का जादू कुछ यूं बिखेरा, “ तेरे बिना जिया जाएं न, बिन तेरे, तेरे बिन सांसो में सांस आये न. इस ट्र्स्ट की चेयरपर्न विभाती ने न केवल हिंदी पंजाबी गाने से इस शाम को यादगार बनाया बल्की नेपाली गीत गा कर भी महिलाओं का उत्साहवर्धन किया. शारदा मितल ने भी अपने व्यस्त दिनच्रर्या से वक्त चुरा कर पुराने दौर का गीत बड़े उत्साह से सुनाया डॉ शालिनी शर्मा, सुनीता धारीवाल जी ने एक डूयिट सुनाया. कार्यक्रम को अंजाम तक पहुचाते हुये शैला जावेद ने “हम चीज है बड़े काम की सुनाया.” शिखा श्याम राणा ने पूरे कार्यक्रम की विडियोग्राफी कर सहयोग दिया. आने वाले संगीत कार्यक्रम के लिए किया गया ये ऑडिशन बहुत सफल रहा.
शिखा श्याम राणा
तस्वीरें कार्यक्रम ऑडिशन
गुरुवार, 10 नवंबर 2016
wtv टीम ने किया नारी कलम गोष्ठी का सफल आयोजन कुरुक्षेत्र में 10 दिसम्बर २०१६
इस लिंक को खोले अधिक तस्वीरें देखने के लिए -नारी कलम गोष्ठी द्वितीय कुरुक्षेत्र में आयोजित
सोमवार, 7 नवंबर 2016
फरीदाबाद में नारी कलम गोष्ठी का आयोजन
women tv india प्रोजेक्ट के आउटरीच कार्यक्रम के तहत 2 नवम्बर २०१६ को नारी कलम गोष्ठी का आयोजन फरीदाबाद में किया जिसकी अध्यक्षता श्रीमती सीमा बंसल ने की -इस गोष्ठी का सफल सञ्चालन एवं मार्गदर्शन wtv की निदेशक श्रीमती शारदा मित्तल ने किया ,गोष्ठी में दर्जनों महिलाओं ने अपनी अपनी कविता पढ़ी ,श्रीमती शारदा मित्तल ने बताया की ऐसे आयोजनों का महिलाओं के जीवन में अलग महत्व होता है जिनसे उनका आतम्विश्वास बढ़ता है और उनकी योग्यता व् नैसर्गिक हुनर को पहचान मिलती है .
शनिवार, 5 नवंबर 2016
मेरे पापा और मैं
तुम ही तो थे मेरे जीवन के
सबसे श्रेष्ठ पुरूष मित्र
मैं और तुम ,तुम और मैं
मेरी दुनिया सब तुम्हारे ईर्द गिर्द
तुम्हारे स्कूटर पर
तुम्हारी टांगों के सहारे सटी
दोनो हाथ फैलाई मैं
तुम्हारी स्पीड के साथ
जूम्म्म जूम्म जूम्म की
आवाजें निकालती मैं
हर मोड़ पर पूरा झुक जाती मैं
हवाई जहाज बन जाती मैं
जैसे सारी दुनिया घूम जाती मैं
तुम्हारा मुझे हर रोज स्कूल छोड़ना
किसी भी लाल बत्ती पर रूकना
और बस मुझे ही देखते जाना
अपनी जेब से जादुई कन्घी निकालना
हवा में उलझे मेरे बाल संवारना
लाल बत्ती पर रूकी भीड़ से बेपरवाह
बस मुझसे ही बातें करना, मुझे ही निहारना
फिर मेरा बस्ता उठाना ,स्कूल छोड़ आना
आखों से ओझल होने तक
मेरी तुम्हारी टाटा बाय ,कहां भूल पाई मैं
कहां सचिवाल्य कहां सैक्टर बत्तीस
कभी नही चूके तुम अपना लन्च छोड़ कर
जब भी लेने आते मुझको मेरी रगंत रंग जाती
मम्मी के हाथों से गुन्थी रिब्बन वाली चोटियों का
तुम तब भी मेरे खुले रिब्बन के छोटे बड़े फूल बनाते रहे
हर लाल बत्ती पर गून्थते रहे मेरी अकसर खुली चोटियां
गोल मोल अजब गजब होती थी घूमघुमाती चोटियां
ऱिब्बन के फूल तो जैसे थे मम्मी की पहेलियां
कैसे लपक कर गोद में उठाते थे मुझे
और टांग लेते थे अपने कन्धों पर मेरा बस्ता व वाटर बौटल
नाली में कपड़े ठूंस ठूस तेज पानी चलाना
पिछले आंगन पानी की निकासी रोक
होम मेड स्विमिंग पूल बनाना
मेरे सिर पर साबुन लगाना पर मेरी आंखे बचाना
अब भी याद है मुझे
चन्डीगढ में बारिश का आना
तुम्हारा मेरे लिये कागज की नाव बनाना
सड़क पर मेन होल की तरफ तेजी से बढते
बरसाती पानी मे मेरी नाव चलाना ,मुझे सिखाना
मेरे साथ भीगना मेरी नाव पकड़ कर लाना
तुम्हारे साथ सैक्टर सत्तारां में
गणतन्त्र दिवस की परेड देखने जाना
तुम्हारे कदमो से कदम मिलाने
को मैने बस दौड़ते जाना
तुम्हारे कन्धों पर बैठ परेड देखना
दशहरे का रावण जलते देखना
वो कामागाटामारू का मेला
वो इन्दिरा गान्धी के ईन्तजार की कतारें
वो सजंय गान्धी की कार पर पत्थर की बौछारे
तुम्हारे संग ही तो देखी थी इन नन्ही आंखों ने
शाम बिताऊं तो कैसे
गुम रहता है महफ़िल के बाहर
गीतों से बहलाऊँ कैसे
साँस लगे जैसे भार है कोई
तन से बाहर भगाऊँ कैसे
सब कुछ तो है पाया मैंने
खुद से जी है चुराया मैंने
सन्नाटो में रहना चाहूँ
अंधेरों को प्रेम है मुझसे
अब और नहीं रहना इस जग में
कोई और वतन है बुलाये मुझको
बहुत कुछ गायब है मुझ में से
खुद को जब जब खोजा मैंने
कोई लिखे कविता मुझ पर भी
कोई लिखे कविता मुझ पर भी
इतनी तो मैं हकदार नहीं
अधिकार की बातें क्या रखूं
मुझ पर मेरा अधिकार नहीं
दिन रात गुजरते रहे उन्हें देखते
वो कहते हैं मुझे प्यार नहीं
कम बोलने वाले हैं सुहाए उन्हें
बहुत बोलने वाले उन्हें दरकार नहीं
दिल कहीं रुके तो यह शब्द रुके
रुक जाने वाले तो हम सवार नहीं
शोरोगुल में चैन से सोतेे हैं हम
सन्नाटे में रहने को हम तैयार नहीं
कोशिश बहुत की तुम से हो पाये हम
बदल पाने के अब कोई आसार नहीं
खुद को खुद में ढूंढते भी तो कैसे
मेरे तन मन की मलकियत मुझे ही देने को वे तैयार नहीं
दाना पानी से छत तक मोहताजी हूँ उनकी
मेरा तो कोई व्यापार नहीं रोजगार नहीं
जो भी किया सरे बाजार किया
अपना तो कोई भी राजदार नहीं
सीढ़ी बना के फासले तय किये लोगो ने
मुस्कुराया बांस भी और कील भी मेरी
टूटी नहीं मैं सीढ़ी भी कितनी लचकदार रही
कहते हैं बुढ़ापा अकेला हैं
मेरे पास तो सखियों की भरमार रही
सुनीता धारीवाल
पन्ने
खुले पन्नों को कौन पढता है
कौन सहेजता है जनाब
कुछ हाथ पोंछ लेते है
कुछ धूल झाड़ लेते है
कुछ मुँह ढांप लेते है
कुछ फेंक देते हैं
मेरा जीवन रहा
खुली किताब के बिखरे पन्ने
कोई जैसे चाहे
शब्दों की मेरे व्याख्या कर ले
मंचासीन है वो
जो नकल हमारी करते रहे
घर बैठे हुनरमंदों को
दे आवाज कौन बुलाता है जनाब
सुनीता धारीवाल
गुरुवार, 3 नवंबर 2016
फरीदाबाद भास्कर में नारी कलम गोश्ठी
गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016
कागजी जिंदगी
चल हट ऐ कागजी सी ज़िन्दगी
बस दो कागज़ -
जन्म प्रमाण पत्र मृत्यु प्रमाण पत्र
और उस अवधि बीच
अनेक कागज और
उन्हें हम कहें जिंदगी
कक्षा दर कक्षा चढ़ते उतरते कागज
प्रसंशा के और प्रताड़न के कागज़
प्रेम पत्र के कागज
कोर्ट कचहरी के कागज
सम्पति के कागज
शारीर जांच के और दवाई के कागज
घर के हर बिल के कागज
किस्तो के ऋण के कागज़
सब ओर कागज ही कागज
बिखरे होते हैं सब ओर
जाने कितने कागज ही कागज
हर साल होती है
दीवाली की सफाई
और फेंक देती हूँ
कितने ही कागज
हाँ बस हर बार
बस एक बैग में रख लेती हूँ
उसके सब कागज
जन्म और मृत्यु के प्रमाण पत्र
और उनके बीच उसके द्वारा
हासिल की गयी उन सब उपलब्धियों के कागज
जिन्हें हासिल कर लाने के लिए
कितनी बार लतियाया था तुम्हे
जितना चिल्लाई थी तुम पर
बिन कागज जीने नहीं देगा जमाना
बेटा जीना छोड़ हासिल करना सिर्फ कागज
ज़माना न मुँह देखता है न हुनर न ही देखेगा दिल पगले
हर जगह मांग लेगा तेरे कागज
तुझे छोड़ देखेगा तो सिर्फ तेरे कागज
अब हर साल निकल आता है
बक्सों में रखा एक बैग
जिसमे भरे है तेरे सब कागज
जन्मना बताते हैं तेरा मर जाना बताते है
और बाकि भरे पड़े उपलब्धियों के सर्टिफिकेट
धिक्कारते हुए मुझे मुँह चिढ़ाते हैं
रोती बिलखती मैं साल दर साल उन्हें घूप दिखा ।
रख देती हूँ फिर उन्हें उसी बैग में
ताकती हूँ तेरी ज़िन्दगी के कागज
जानती हूँ अगली पीढ़ी कहेगी
क्यूँ रखने है ये कीट लगे पीले कागज
इस बैग को वास्तु दोष बताएंगे
मेरे सामने ही मेरी एक जिंदगी को हटाएंगे
और दीवाली की किसी सफाई में
इस बैग में भरे आंसू भी
घर से निकाले जायेंगे और दिए जलाएंगे
सब दीवाली मनाएंगे
सुनीता धारीवाल
सफ़र सिरफिरा है
सफर सिरफिरा है
पगडण्डियां नहीं है
रास्ते चुन रहा है
बेआवाज़ मंजिलें है
बस शोर सुन रहा है
सफर सिरफिरा है
चल सरक सरक रहा है
नई राहे चुन रहा है
मतवाला है अकेला है
दिशा से रिश्ते बुन रहा है
सफर सिरफिरा है
घूमे है गोल मोल सा
खुद अपना सर धुन रहा है
सफर सिरफिरा है
बन के मेरा हमसफ़र ये
कांटे राह के चुन रहा है
ये सफर सिरफिरा है
जैसे मैं भी सिरफिरा हूँ
चलो रोक से समय को
मेरे सामने उड़ रहा है ।
ये सफर सिरफिरा है ।
मैंने सर पे रख लिया है
मेरे ही सर चढ़ गया है ।
ये मेरा सफर सिरफिरा है
सुनीता धारीवाल
गजल भी हो जायेगी
प्यार हो जायेगा तो ग़ज़ल भी हो जायेगी
सूखी दिल की धरती भी सजल हो जायेगी
कोई दीखता नहीं वीरान बस्ती में दिया उठाये
कोई मिल जायेगा तो रौशनी भी हो जायेगी
तरंगें रूह की टकराती नहीं किसी की रूह से
कहीं भिड़ी तो साँस ये तूफ़ान सी हो जाएँगी
कोशिश बहुत की कि लिखूं ग़ज़ल कोई गाने वाली
न कोई आएगा न कोई ग़ज़ल ही बन पायेगी
नकली तो कभी कुछ कहा नहीं जाता मुझसे
सोच भी लुंगी तो दुनिया को खबर हो जायेगी
सुनीता धारीवाल जांगिड़
सोमवार, 19 सितंबर 2016
घाट घाट का पानी
कविता -घाट घाट का पानी
ठीक ही तो कहते हो
सही पहचाना
घाट घाट का पानी
पिया है मैंने
यही रहा मेरा
आजीवन पर्यटन
कितने मंदिरो मस्जिदो गुरुद्वारों के घाट
पहुंची भी और पानी चखा भी
कितने तालाबो का कीचड़ सना पानी
जो नहाने भर का था वो पिया भी
कभी संतान के लिए
कभी तुम्हारे लिए
कभी रियाया के लिए
जिन घाटो पर तर्पण होता है
वह भी चखे मैंने
जहाँ नव विधवाएं चूड़ियाँ तोड़
वैधव्य स्नान करने जाती है
उन घाटो का जल भी
अंजुली भर चखा मैंने
जिन जोहड़ो पर अल सुबह लोग
पाणी कानी के हाथ धोने
जा पहुँचते है
उसका भी स्वाद कहाँ अछूता मुझ से
उन नमक डले लोटों का जल
भी चखा है मैंने
जिन्हें पंच्यात बीच बैठ भरा जाता है
और नमक डाल शपथ ली जाती है कि
बिरादरी बीच का मामला है
कोई ठाणे नहीं जाएगा
गरीब की बेटी लुटी आबरू
और क़त्ल का मामला
यहीं लोटे के सामने सुलझाया जायेगा
याद आया मैंने तो
उस तालाब का जल भी मुहँ लगाया है
जहाँ सर पर मैला ढोने वाली औरत ने
टोकरा एक ओर रख अपना सर धुलवाया है
गावं देहात की गली गली में खुले
उन छोटे छोटे पूछाघरों की अँधेरी
गुफाओ में जहाँ भूत प्रेत
बदन उघाड़ कर डराए जाते हैं
और जल में कुछ मन्त्र फूक
प्रेत भगाए जाते है
उन बंद बोतलों का पानी भी मैंने
पी कर दिखाया है
बड़े बड़े यज्ञो में आचमन का जल
मैंने पिया है
कलश यात्राओ के कलशों में भरा
कभी 21 कभी 31 घाटो का पानी
भी मैंने पिया है
वाल्मिक का चमार का ,
खाती का लुहार का
सिकलीगर का सिहमार का
बैरागी का सुनार का
जाट का सैनी का
धोबी का कुम्हार का
पंडित का रेफूजी का
धानक का सरदार का
अड़तीस जात के घर भीतर
नलको का पानी
उन्ही के बर्तनों में पिया
और जिया है मैंने
रंडी की दुकान का
कोठे की मचान का
मंडी के सुलतान का
बाबे की कोठी आलिशान का
पानी भी कहाँ रहा अछूता
मेरी जिह्वा की तंत्रिकाओं से
राज दरबार के घाट का
राजाओ के ठाठ का
मंत्रिओं की बाँट का
सत्ता की आंट का
पानी पिया है मैंने
कुत्तो के पात्र का
गरीब किसी छात्र के
अभावग्रस्त गिलास का
पानी पिया है मैंने
हरी के द्वार का
पीर की मजार का
पानी पिया है मैंने
देसी का अंग्रेजी का
कच्ची दारू की भट्टी का
डूम का मिरासी का
ये दुनिया लाख चौरासी का
पानी पिया है मैंने
ये घाट घाट का पानी
जब चखा तो यकीन मानो
पानी सर चढ़ गया
फिर तो एक घाट भी नहीं छोड़ा
और पीने से मुख न मोड़ा
जितने भी घाट मैंने गिनवाये है
तुम्हारी कसम मैंने नहीं बनवाये है
ये सब तुमने ही बनाये थे मेरे लिए
कि मैं जल से बाहर ही न निकलूं
इसे आँखों में भी रखूं
इसे देह में भी रखूं
और तुम्हारे दैहिक जलप्रपात तले
अपना वजूद तलाशूँ
यकीन मानो जितना भी पानी
अपनी देह की गुफाओं से
निगला है
सब का सब आँखों से झरा है
मन की उलझी कंदराओं से
जबरन खींचा था जो पानी
माँ कसम खारा ही नहीं
तेजाबी हो कर मेरी
आँखों के कोरो में जा बैठा है
कितने कड़वे घूँट
पी कर मुसुकुरायी हूँ मैं
अब तो पकी उम्र के रोयें
पानीयों के बांध बनाना सीख गए हैं
समेट लेते है सारा पानी
और मैं अब भी विचरती हूँ
नए नए घाट
ताकि
घाट घाट जा कर
एक दिन खुद को पा लूँ
और उस दिन तुम कहो
घाट घाट का पानी पिए
बेगैरत औरत
और हाँ
घाट घाट का पानी पीते पीते
मैं घाट घाट की बोली भी
सीख गयी हूँ
मुझे अब शर्म नहीं आती
गरियाने में
मैं जानती हूँ कहाँ शिष्ट होना है
कहाँ शिष्टाचार खोना है
बस मेरी इसी समझ से
थोडा डर सा गया है
जमाना मुझ से
और आजकल मेरे मुहँ कम ही लगता है
सुनीता धारीवाल जांगिड
रविवार, 18 सितंबर 2016
आखर इश्क़ कविता पाठ प्रदर्शन हुआ सफल
वरिष्ठ कवियत्री राजेंदर कौर ने नए चंडीगढ़ शहर का खूबसूरत वर्णन करते हुए कहा -मेरा शहर चंडीगढ़ सोहना अते प्यारा -साफ़ साफ़ टे पक्का पक्का ए सारे द सारा -और लोकप्रिय वरिष्ठ कवियत्री सुश्री मंजीत इंदिरा ने खूबसूरत गज़ल गा कर पता हुंदा सादे नाल होनियाँ निरालियाँ कच्चियाँ कचूरा नाल पौंदे न प्यालियाँ समां बाँध दिया . इस यादगार शाम में कवियत्रियों ने खूब प्रसंशा बटोरी
शनिवार, 10 सितंबर 2016
सुन ससुराल -मुंबई निवासी संगीता जांगिड की लिखी कविता
कविता सुन ससुराल
अच्छा लगता हैं तेरा साथ
अब तक जो किया सफर
थामकर तेरा हाथ
पहला पाँव जब धरा था
तेरे नाम से ही मन डरा था
बिन आवाज़ थालियों को उठाया था
साड़ी में एक एक कदम डगमगाया था
रस्मों रिवाजों को तहेदिल से निभाया था
खनकती चुड़ियों से कड़छी को चलाया था
डरते डरते पहली बार खाना बनाया था
बस ऐसे ही मैंने
सबको अपना बनाया था
सुन ससुराल
तुम साक्षी हो मेरे एक एक पल के
वो पिया मिलन
वो पहली बार जी मिचलाना
खट्टी चीज़ों पर मन ललचाना
वो पहली बार
अपने अंदर जीवन महसूस करना
कपड़े सुखाने आँगन में डोलना
पापड़ का कच्चा कच्चा सा सेंकना
गोल रोटी के लिये जद्दोजहद करना
दाल का तड़का, दूध का उफनना
कटी हुई भिंडी को धोना
पहली बार हलवे का बनाना
पहली दिवाली पर दुल्हन सी सजना
करवा चौथ पर मनुहार करवाना
हाँ ससुराल
तुम्हीं ने दिये ये अनमोल पल
वधु बन आयी थी
तुम्हीं थे जिसने सर आँखों बैठाया
बड़े स्नेह से अपनापन जताया
यही आकर मैंने सब सीखा और जाना
कभी किसे मनाया तो कभी किसे सताया
एक ही समय में
मैंने कितने किरदारों को निभाया
खुद को खो खोकर मैंने खुद को पाया
सुन ससुराल
मायके के आगे भले ही
हमेशा उपेक्षित रहे तुम
लेकिन
फिर भी मेरे अपने रहे तुम
मायके में भी मेरा सम्मान रहे तुम
मेरे बच्चों की गुंजे जहाँ किलकारियाँ
वो आँगन रहे तुम
मेरे हर सुख दुख के साक्षी रहे तुम
सुन ससुराल
पीहर की गलियाँ याद आती हैं
गीत बचपन के गुनगुनाती हैं
लेकिन
मायके में भी तेरी बात सुहाती हैं
तेरा तो ना कोई सानी हैं
तू ही तो मेरे उतार चढ़ाव की कहानी हैं
कितने सबक़ तुने सीखाये
पाठशाला ये कितनी पुरानी हैं
सुन ससुराल
अब तू ससुराल नहीं
मेरा घर रुहानी हैं ।
सुनीता जांगिड मुंबई
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