गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016

कागजी जिंदगी

चल हट ऐ कागजी सी ज़िन्दगी
बस दो कागज़ -
जन्म प्रमाण पत्र मृत्यु प्रमाण पत्र
और उस अवधि बीच
अनेक कागज और
उन्हें हम  कहें जिंदगी
कक्षा दर कक्षा चढ़ते उतरते कागज
प्रसंशा के  और प्रताड़न के कागज़
प्रेम पत्र के कागज
कोर्ट कचहरी के कागज
सम्पति के कागज
शारीर जांच के और  दवाई के कागज
घर के हर बिल के कागज
किस्तो के ऋण के कागज़
सब ओर कागज ही कागज
बिखरे होते हैं सब ओर
जाने कितने कागज ही कागज
हर साल  होती है
दीवाली की सफाई
और फेंक देती हूँ
कितने ही कागज
हाँ बस हर बार
बस एक बैग में रख लेती हूँ
उसके सब कागज
जन्म और मृत्यु के प्रमाण पत्र
और उनके बीच  उसके द्वारा
हासिल की गयी  उन सब उपलब्धियों के कागज
जिन्हें हासिल कर लाने के लिए
कितनी बार लतियाया था तुम्हे
जितना चिल्लाई थी तुम पर
बिन कागज जीने नहीं देगा जमाना
बेटा  जीना  छोड़ हासिल करना सिर्फ कागज
ज़माना न मुँह देखता है न हुनर न ही देखेगा दिल पगले
हर जगह मांग लेगा तेरे कागज
तुझे छोड़ देखेगा तो सिर्फ तेरे कागज
अब हर साल निकल आता है
बक्सों में रखा एक बैग
जिसमे भरे है तेरे सब  कागज
जन्मना बताते हैं तेरा मर जाना बताते है
और बाकि भरे पड़े  उपलब्धियों के सर्टिफिकेट
धिक्कारते हुए मुझे मुँह चिढ़ाते हैं
रोती बिलखती मैं साल दर साल उन्हें घूप दिखा ।
रख देती हूँ फिर उन्हें उसी बैग में
ताकती हूँ  तेरी ज़िन्दगी के कागज
जानती हूँ अगली पीढ़ी कहेगी
क्यूँ रखने है ये कीट लगे पीले कागज
इस बैग को वास्तु दोष बताएंगे
मेरे सामने ही मेरी एक जिंदगी को हटाएंगे
और दीवाली की किसी सफाई में
इस बैग में भरे आंसू भी
घर से निकाले जायेंगे और दिए जलाएंगे
सब दीवाली मनाएंगे

सुनीता धारीवाल

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