सफर सिरफिरा है
पगडण्डियां नहीं है
रास्ते चुन रहा है
बेआवाज़ मंजिलें है
बस शोर सुन रहा है
सफर सिरफिरा है
चल सरक सरक रहा है
नई राहे चुन रहा है
मतवाला है अकेला है
दिशा से रिश्ते बुन रहा है
सफर सिरफिरा है
घूमे है गोल मोल सा
खुद अपना सर धुन रहा है
सफर सिरफिरा है
बन के मेरा हमसफ़र ये
कांटे राह के चुन रहा है
ये सफर सिरफिरा है
जैसे मैं भी सिरफिरा हूँ
चलो रोक से समय को
मेरे सामने उड़ रहा है ।
ये सफर सिरफिरा है ।
मैंने सर पे रख लिया है
मेरे ही सर चढ़ गया है ।
ये मेरा सफर सिरफिरा है
सुनीता धारीवाल
वरिष्ठ सामाजिक चिंतक व प्रेरक सुनीता धारीवाल जांगिड के लिखे सरल सहज रोचक- संस्मरण ,सामाजिक उपयोगिता के ,स्त्री विमर्श के लेख व् कवितायेँ - कभी कभी बस कुछ गैर जरूरी बोये बीजों पर से मिट्टी हटा रही हूँ बस इतना कर रही हूँ - हर छुपे हुए- गहरे अंधेरो में पनपनते हुए- आज के दौर में गैर जरूरी रस्मो रिवाजों के बीजों को और एक दूसरे का दलन करने वाली नकारात्मक सोच को पनपने से रोक लेना चाहती हूँ और उस सोच की फसल का नुक्सान कर रही हूँ लिख लिख कर
गुरुवार, 6 अक्तूबर 2016
सफ़र सिरफिरा है
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