सोमवार, 30 मार्च 2020

एक था वो 
जो आज नहीं रहा 
जिसे मैंने 
मुझ को 
चाहने की इज़ाज़त 
कभी नहीं दी  
चला गया
 अगले जन्म 
भी इंतज़ार करेगा 
ये वादा कर 
और मैं हूँ 
हतप्रभ 
सफ़ेद 
जिसे देख 
आँखे गुस्से से लाल 
हुआ करती थी 
आज भीग कर 
लाल हुई जाती है 
भीतर है 
जाने कैसी 
छटपटाहट
जो रिश्ते 
कभी बनाना 
नहीं चाहे 
पूछ रही हूँ 
खुद से 
क्या 
सच में 
नहीं बना था 
कोई रिश्ता

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