एक था वो
जो आज नहीं रहा
जिसे मैंने
मुझ को
चाहने की इज़ाज़त
कभी नहीं दी
चला गया
अगले जन्म
भी इंतज़ार करेगा
ये वादा कर
और मैं हूँ
हतप्रभ
सफ़ेद
जिसे देख
आँखे गुस्से से लाल
हुआ करती थी
आज भीग कर
लाल हुई जाती है
भीतर है
जाने कैसी
छटपटाहट
जो रिश्ते
कभी बनाना
नहीं चाहे
पूछ रही हूँ
खुद से
क्या
सच में
नहीं बना था
कोई रिश्ता
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