शनिवार, 14 मार्च 2020

आज तक हरे थे 
अभी कहाँ भरे थे 

पावँ के छाले 
सब देखे भाले 
खूब संभाले 

मैं अंग अंग रिसीे थी ।
कुचली थी और पिसी थी 

मरहम से लगे तुम 
सो लगा लिया 
बिन सोचे  समझे 

आज मरहम हटाई है 
तल में दर्द दुहाई है 

जो गहरे थे कहाँ भरे है 
जख्म तो अपने  हरे भरे है 

बाकि फिर कभी
@sd

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें