शनिवार, 21 मार्च 2020

रंगो से रंगे है गली नुक्कड़ बाज़ार 
अबीर गुलाल लाल पीले नीले हरे 
ढेरो खुशबूओं वाले रंगीन पानी 
खाली भरी पिचकारी 
सब देखा आँखों से 
छू कर भी देखा 
कैद किया आँखों में 
जो भी रंग और मेले है 
चन्द लम्हों में धूल गए 
जब याद तुम्हारी आई 
वो नन्ही सी पिचकारी 
जो मैंने ले कर दी थी  
जब तुम्हे पकड़नी भी नहीं आती थी 
चलाना तो दूर की बात थी 
और ठिठक कर घुल गए सभी रंग 
मेरे गाल पर टपकी दो बूंदों में 
और हंस दी मैं अपने आप 
जब पीछे से पुकारा था तुमने 
रंग लगवा लो प्लीज माँ

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