सोमवार, 30 मार्च 2020

ताज़ी रचना गौर फरमाइए जरा 

खुद पे एतबार कर बैठी 
मैं उन से प्यार कर बैठी 

लगा था पाउंगी  मन चाहा 
ये किस की चाह कर बैठी 

दो ही बहुत थी आँखे तो 
क्यों आँखे चार कर बैठी 

दिल ही तो था मजबूत मेरा 
उसे ही  बीमार कर बैठी 

कह दी उसे कुछ  बाते ऐसी 
उसका जीना दुश्वार कर बैठी 

उसी को जीतने की खातिर 
मैं अपनी हार कर बैठी 

वो राही डगर दूसरी का 
हाय किसका इंतज़ार कर बैठी 

वो गया ही कहाँ है जो लौटेगा 
 दिल उसका घरबार कर बैठी 

रस्मो रिवाज समाज की सरंक्षक मैं 
उसी रस्म ए दुनिया को ललकार बैठी 

इस  बार इस साहस से भी 
हाथ दो चार कर बैठी 

न मंजिल वो न मंजिल मैं
 उस को ही हमराह कर बैठी 

वो भी तो टूटने  लगा है 
ये कैसा वार कर बैठी 

वो अलग बाग़ का है माली 
क्यों उसे अपना पहरेदार कर  बैठी 

सुनीता धारीवाल

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