ताज़ी रचना गौर फरमाइए जरा
खुद पे एतबार कर बैठी
मैं उन से प्यार कर बैठी
लगा था पाउंगी मन चाहा
ये किस की चाह कर बैठी
दो ही बहुत थी आँखे तो
क्यों आँखे चार कर बैठी
दिल ही तो था मजबूत मेरा
उसे ही बीमार कर बैठी
कह दी उसे कुछ बाते ऐसी
उसका जीना दुश्वार कर बैठी
उसी को जीतने की खातिर
मैं अपनी हार कर बैठी
वो राही डगर दूसरी का
हाय किसका इंतज़ार कर बैठी
वो गया ही कहाँ है जो लौटेगा
दिल उसका घरबार कर बैठी
रस्मो रिवाज समाज की सरंक्षक मैं
उसी रस्म ए दुनिया को ललकार बैठी
इस बार इस साहस से भी
हाथ दो चार कर बैठी
न मंजिल वो न मंजिल मैं
उस को ही हमराह कर बैठी
वो भी तो टूटने लगा है
ये कैसा वार कर बैठी
वो अलग बाग़ का है माली
क्यों उसे अपना पहरेदार कर बैठी
सुनीता धारीवाल
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