सोमवार, 27 अप्रैल 2020

न आंसू समझता है न खामोशी समझता है 
थक गए  मेरे शब्दो की न बेहोशी समझता है ।
 मेरी सपनीली आँखों की न मदहोशी समझता है 
समझता है कि मैं समझती हूं कि वो कुछ भी नही समझता है
इतनी बॉवली भी कोन्या 
सुनीता धारीवाल

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें